हरे कृष्ण मंत्र का क्या अर्थ है, हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना किसी भी व्यक्ति के लिए कैसे सहायक होता है?
आध्यात्मिक सेवा का पहला सिद्धांत हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करना है (महा का अर्थ है “महान”, मंत्र का अर्थ है “वह ध्वनि जो मन को अज्ञान से मुक्त कर दे).”
कृष्ण या क्राइस्ट- नाम समान ही है. मुख्य बिंदु वैदिक शास्त्रों के निषेध का पालन करना है जो इस युग में भगवान के नाम के जपने का सुझाव देते हैं. सबसे सरल मार्ग महामंत्र का जाप करना है: हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे.
राम (हे सर्वोच्च भोक्ता) और कृष्ण (हे सर्व मनभावन भगवान) भगवान के नाम हैं, और हरे (भगवान की ऊर्जा है). अतः जब हम महामंत्र का जाप करते हैं, तो हम भगवान को उनकी ऊर्जा के साथ संबोधित करते हैं. जाप करना कृष्ण की प्रार्थन करना है, इसलिए हरे कृष्ण महामंत्र के आरंभ में हम पहले कृष्ण की आंतरिक ऊर्जा को संबोधित करते हैं, (हरे) जिसका अर्थ है “हे राधारानी! हे हरे! हे भगवान की ऊर्जा!” जब हम किसी को इस प्रकार से संबोधित करते हैं, तब वह सामान्यतः कहेगा, “हाँ, तुम क्या चाहते हो?” उत्तर है, “मुझे अपनी सेवा में रख लीजिए”.
जैसे भौतिक संसार में पुरुष और स्त्री होते हैं, ठीक वैसे ही, भगवान मूल पुरुष हैं, और उनकी ऊर्जा (प्रकृति) मूल स्त्री है. यह ऊर्जा दो प्रकार की होती है, आध्यात्मिक और भौतिक. वर्तमान में हम भौतिक ऊर्जा के बंधन में हैं. इसलिए हम कृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि वे कृपापूर्वक हमें भौतिक ऊर्जा की सेवा से निकालें और हमें आध्यात्मिक ऊर्जा की सेवा में स्वीकार कर लें.
नारद पंचतंत्र में ऐसा कहा गया है कि सभी वैदिक अनुष्ठान, मंत्र, और ज्ञान आठ शब्दों हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे में समाहित है. उसी प्रकार, कलि-संतरण उपनिषद में कहा गया है कि हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे, विशेष रूप से कलि के इस भौतिकवादी युग के पतनकारी और प्रदूषणकारी प्रभाव का प्रतिकार करने के लिए हैं.
यह जाप किसी बालक द्वारा अपनी माँ की उपस्थिति के लिए की गई उसकी सच्ची पुकार जैसा ही है. माँ हरा भक्तों को भगवान पिता की कृपा प्राप्त करने में सहायता करती हैं, और भगवान सच्चाई से इस मंत्र का जाप करने वाले भक्त के सम्मुख स्वयं को प्रकट करते हैं.
भगवान ने कृपापूर्वक हमारे लिए उनके नाम का जाप करना बहुत सरल बना दिया है, और उन्होंने अपनी सारी शक्तियाँ उनमें डाल दी हैं. इसलिए भगवान का नाम और स्वयं भगवान एक रूप ही हैं. इसका अर्थ है कि जब हम पवित्र नाम का जाप करते हैं तो हम सीधे भगवान के संपर्क में होते हैं और शुद्ध हो जाते हैं. इसलिए, हमें सदैव प्रयास करना चाहिए कि हम समर्पण और सम्मान के साथ जाप करें. आप जितने ही ध्यान और गंभीरता से भगवान के इन नामों का जाप करते हैं, उतनी ही आध्यात्मिक प्रगति करते हैं.
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण - अंग्रेजी), “आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान”, पृष्ठ 17, 109, और 170 
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण - अंग्रेजी), “परम भगवान का संदेश”, अंतिम पृष्ठ 


	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
	
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
			
			
		
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	
		
		
	






