कृष्ण के अनुयायी जाप क्यों करते हैं?

कृष्ण चेतना बहुत सरल है. बस इन सोलह शब्दों का जाप करें: हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे. यदि हम इस मंत्र का जाप करने लगें, तो हम सीधे परम भगवान के संपर्क में आ जाते हैं. जिससे हम विशुद्ध हो जाते हैं. यदि हम अग्नि के समीप जाएँ तो हम गर्म हो जाते हैं. उसी प्रकार, यदि हम सीधे परम आत्मा के संपर्क में आते हैं, तो हमारा शुद्धिकरण प्रारंभ हो जाता है. अतः यदि आप इस हरे कृष्ण, हरे कृष्ण का जाप करते हैं, तो आपकी अशुद्ध चेतना शुद्ध हो जाएगी और आप जानेंगे कि आप क्या हैं. हरे कृष्ण का जाप करना चित्त को सभी मैली वस्तुओं से शु्द्ध करने की प्रक्रिया है. और जैसे ही आप सारे मैल से शुद्ध हो जाते हैं, आपकी भौतिक चिंताएँ समाप्त हो जाती हैं. ऐसा भागवद्-गीता [18.54] में कहा गया है.

ब्रम्ह-भूतः प्रसन्नात्मा न सोचति न कांक्षति
समः सर्वेषु भूतेषु मद्-भक्तिम् परम

ब्रम्ह-भूत शब्द का अर्थ हैं कि जैसे ही आप आध्यात्मिक समझ के स्तर पर आते हैं, आप तुरन्त आनंदमय हो जाते हैं और समस्त भौतिक चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं. फिर आप किसी लाभ की कामना नहीं करते, ना ही आप हानि होने पर दुखी होते हैं (न सोचति न कांक्षति). फिर आप सभी को एक ही स्तर पर देख सकते हैं, और भगवान के परम व्यक्तित्व के साथ आपका टूटा हुआ संबंध दोबार स्थापित हो जाता है. तब आपका वास्तवित जीवन प्रारंभ हो जाता है. भगवान चैतन्य महाप्रभु हरे कृष्ण जपने का परामर्श देते हैं. इस हरे कृष्ण मंत्र का जाप करने से जैसे ही हमारा हृदय शुद्ध हो जाता है, हमारे समस्याजन्य भौतिक अस्तित्व की अग्नि बुझ जाती है. वह कैसे बुझती है? जब हम अपने हृदय को शुद्ध कर लेते हैं तो हमें अनुभव होगा की हम इस भौतिक संसार से संबंध नहीं रखते हैं. चूँकि लोग इस भौतिक संसार से पहचान बनाते हैं, वे सोच रहे हैं, “मैं एक भारतीय हूँ, मैं एक अंग्रेज हूँ, मैं यह हूँ, मैं वह हूँ.” लेकिन यदि कोई हरे कृष्ण मंत्र का जाप करता है, तो उसे अनुभव होगा कि वह यह भौतिक शरीर नहीं है. “यह भौतिक शरीर या यह भौतिक संसार मेरा नहीं है. मैं एक आत्मा हूँ, परम का अंश. मेरा उनके साथ शाश्वत संबंध है, और मेरा भौतिक संसार से कोई लेना देना नहीं है.” यह मुक्ति, ज्ञान कहलाता है. यदि मेरा भौतिक संसार से कुछ लेना-देना नहीं है, फिर मैं मुक्त हूँ. औऱ उस ज्ञान को ब्रम्ह भूत कहते हैं. इसलिए जो कृष्ण चैतन्य भक्त होते हैं वे कृष्ण की शरण ले चुके हैं, और श्रवण औऱ जाप करना शुरुआत है. श्रवणम् कीर्तनम् विष्णोः

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण – अंग्रेजी), “आत्मबोध की खोज”, पृष्ठ 11 अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण – अंग्रेजी), “आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान”, पृष्ठ 166 और 167