“हालाँकि, हम स्वयं को बुराइयों और पापमय प्रतिक्रियाओं से सुरक्षित रखने के लिए कई सावधानियाँ बरत सकते हैं, लेकिन अनजाने में हम कई सारी चीटियों और अन्य कीटों की हत्या कर देते हैं भले ही हम बहुत ही सामान्य कार्य कर रहे हों, जैसे किसी एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना. यहाँ तक कि बस पानी पीने समय भी हम बहुत सूक्ष्म जलचर प्राणियों को मार देते हैं, और हम केवल घर की सफाई करने में या खाते या सोते समय भी बहुत से जीवों की हत्या कर देते हैं. संक्षेप में, हम उन सभी पापों से नहीं बच सकते हैं, जो हम अनजाने में, जीवन की सामान्य गतिविधि में भी करते हैं. मनुष्य के नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति को तब फांसी दी जा सकती है जब वह हत्या करता है लेकिन जब वह हीन पशुओं को मारता है तो उसे फांसी नहीं दी जाती है. भगवान के नियमों के अनुसार; हालाँकि, किसी हीनतर प्राणी को मारने पर भी व्यक्ति पाप करता है. दोनों ही कृत्यों के लिए हमें भगवान के नियमों द्वारा दंड दिया जाता है. जो लोग भगवान के नियम, या बल्कि उनके अस्तित्व तक को नहीं मानते, वे ऐसे पाप करने पर उधृत हो सकते हैं, और वे ऐसे पाप करने के लिए ही हैं, लेकिन उससे भगवान के अस्तित्व या उनके शाश्वत नियमों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

सभी कर्म विष्णु (कृष्ण) की संतुष्टि के लिए करने और विष्णु को अर्पित किए गए प्रसाद के अवशेष लेकर, हम उन बुराइयों और पापमय प्रतिक्रियाओँ से बच सकते हैं जो हमारे लिये निर्धारित किये गये कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान संचित होते हैं.”

स्रोत: अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण अंग्रेजी), “परम भगवान का संदेश”, पृ. 33

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