भगवान कृष्ण की नित्य लीलाएँ बिना अंत के चली आ रही हैं.
सूर्य के साथ कृष्ण की तुलना बड़ी उचित है. जैसे ही सूर्य अस्त होता है, अंधेरा स्वतः ही हो जाता है. लेकिन सामान्य व्यक्ति के द्वारा अनुभव किए जाना वाला अंधकार सूर्योदय या सूर्यास्त के समय पर सूर्य पर कोई प्रभाव नहीं डालता. भगवान कृष्ण की उपस्थिति और अनुपस्थिति भी सूर्य के समान है. वे असंख्य ब्रम्हांडों में उपस्थित और अनुपस्थित होते रहते हैं, और जब तक वे किसी विशिष्ट ब्रह्मांड में उपस्थित हैं उस ब्रम्हांड में पारलौकिक प्रकाश विद्यमान होता है, लेकिन जिस ब्रम्हांड से वे चले जाते हैं वहाँ अंधेरा हो जाता है. यद्यपि उनकी लीलाएँ सर्वकालिक हैं. भगवान किसी न किसी ब्रम्हांड मे हमेशा उपस्थित रहते हैं, वैसे ही जैसे सूर्य पूर्वी या पश्चिमी गोलार्द्ध में उपस्थित रहता है. सूर्य भारत या अमेरिका में हमेशा विद्यमान होता है, लेकिन जब सूर्य भारत में होता है, तो अमेरिकी भूमि अंधेरे में होती है, औऱ जब सूर्य अमेरिका में उपस्थित होता है, तब भारतीय गोलार्द्ध अंधेरे में होता है. जैसा कि सूर्य भोर में दिखाई देता है और मध्याह्न तक धीरे-धीरे उगता है और फिर एक साथ एक गोलार्ध में उगते हुए दूसरे गोलार्ध में अस्त होता है, अतः भगवान कृष्ण का एक ब्रह्मांड में लुप्त होना और दूसरे में उनके अलग-अलग लीलाओं की शुरुआत एक साथ होती है. जैसे ही एक लीला यहाँ समाप्त होती है, वह दूसरे ब्रम्हांड में घटने लगती है. इसलिए उनकी नित्य-लीला या शाश्वत लीलाएँ बिना अंत के चली जा रही हैं. जैसे सूर्योदय चौबीस घंटे में एक बार होता है, उसी प्रकार भगवान कृष्ण की लीलाएँ ब्रम्हा के एक दिन में एक बार घटित होती हैं, जिसकी गणना भगवद-गीता में 4,300,000,000 सौर वर्षों के रूप में दिया गया है. लेकिन जहाँ भी भगवान उपस्थित होते हैं, प्रकट ग्रंथों में वर्णित उनकी सभी विभिन्न लीलाएँ नियमित अंतराल पर घटित होती रहती हैं. जैसे सूर्यास्त के समय साँप शक्तिशाली हो जाते हैं, चोर उत्साहित हो जाते हैं, भूत सक्रिय होते हैं, कमल झर जाता है और चक्रवाकी विलाप करता है, वैसे ही भगवान कृष्ण की अनुपस्थिति में, नास्तिक अनुप्राणित अनुभव करते हैं, और भक्त उदास हो जाते हैं.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 02- पाठ 07