मनु-संहिता समस्त मानव समाज के लिए नियमों की पुस्तक है.

पूरी प्रशासकीय प्रणाली की व्यवस्था वापस घर, परम भगवान तक जाने के उद्धेश्य के लिए की गई है. ब्रह्मा परम भगवान के व्यक्तित्व के प्रतिनिधि हैं, और मनु ब्रह्मा के प्रतिनिधि हैं. इसी प्रकार ब्रह्मांड के विभिन्न ग्रहों पर अन्य राजा मनु के प्रतिनिधि हैं. समस्त मानव समाज के लिए मनु-संहिता नियम पुस्तिका है, जो समस्त कर्मों को भगवान की आध्यात्मिक सेवा की ओर अग्रसर करती है. इसलिए, राजाओं को भी जानना चाहिए कि प्रशासन में उनकी जिम्मेदारी केवल नागरिकों से कर वसूलना नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर यह देखना है कि उसके अधीन नागरिक विष्णु-उपासना में शिक्षित हो रहे हैं. सभी को विष्णु उपासना में शिक्षित होना चाहिए और हृषिकेश, इंद्रियों के स्वामी की आध्यात्मिक सेवा में रत होना चाहिए. बाध्य आत्माओं का उद्देश्य अपनी भौतिक इंद्रियों की संतुष्टि नहीं बल्कि परम भगवान के व्यक्तित्व, हृषिकेश की इंद्रियों को संतुष्ट करना होता है. समस्त प्रशासकीय व्यवस्था का यही उद्देश्य है. जो भी ब्रह्मा के संस्करण का यह रहस्य जानता है, वह प्रशासन का संपूर्ण प्रमुख होता है. जो यह नहीं जानता वह बस नाम मात्र का प्रशासक है. नागरिकों को भगवान की आध्यात्मिक सेवा में प्रशिक्षित करके, राज्य का प्रमुख अपने कर्तव्यों में मुक्त हो सकता है; अन्यथा वह उसे सौंपे गए कर्तव्यों में असफल हो जाएगा और इस प्रकार सर्वोच्च अधिकारी द्वारा दंडनीय होगा. प्रशासनिक कर्तव्य के निर्वहन में कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

अभय भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 13 – पाठ 12