सतयुग में केवल एक वेद था और ऊँकार ही एकमात्र मंत्र था.
सत्य युग में केवल एक वेद था, न कि चार. बाद में, कलि-युग के प्रारंभ से पहले, इस एक वेद, अथर्व वेद (अथवा, कुछ लोग कहते हैं, यजुर्वेद), को मानव समाज की सुविधा के लिए चार वेदों – साम, यजुर्, ऋग् और अथर्व – में बाँट दिया गया. सत्य-युग में एक मात्र मंत्र ऊँकार (ऊँ तत् सत्) था. हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे मंत्र में यही नाम ऊँकार प्रकट होता है. यदि कोई व्यक्ति ब्राह्मण न हो, तो वह ऊँकार का उच्चारण नहीं कर सकता और वांछित परिणाम प्राप्त नहीं कर सकता. लेकिन कलियुग में लगभग हर व्यक्ति शूद्र है, और प्रणव, ऊँकार के उच्चारण के लिए अयोग्य है. इसलिए शास्त्रों ने हरे कृष्ण महा-मंत्र के जाप की अनशंसा की है. ऊँकार एक मंत्र, या महा-मंत्र है, और हरे कृष्ण भी एक महा-मंत्र है. ऊँकार का उच्चारण करने का उद्देश्य भगवान के परम व्यक्तित्व, वासुदेव (ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय) को संबोधित करना है. और हरे कृष्ण मंत्र का जाप करने का उद्देश्य भी वही है. हरे: “हे प्रभु की ऊर्जा!” कृष्ण: “हे भगवान कृष्ण!” हरे: “हे प्रभु की ऊर्जा!” राम: “हे परम भगवान, हे परम भोक्ता!” एकमात्र पूज्य भगवान हरि हैं, जो वेदों का लक्ष्य हैं (वेदैश्च सर्वैर अहम् एव वेद्य:). देवताओं की पूजा करते हुए, व्यक्ति भगवान के विभिन्न भागों की पूजा करता है, जैसे कोई पेड़ की शाखाओं और टहनियों को सींचता है. किंतु भगवान के सर्व-समावेशी परम व्यक्तित्व नारायण की पूजा करना, पेड़ की जड़ पर पानी डालने जैसा है, इस प्रकार तने, शाखाओं, टहनियों, पत्तियों आदि को पानी की आपूर्ति करना. सत्य-युग में लोग केवल भगवान नारायण की पूजा करके जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करना जानते थे. उसी उद्देश्य की पूर्ति इस कलियुग में हरे कृष्ण मंत्र के जाप से की जा सकती है, जैसा कि भागवतम में अनुशंसित किया गया है. कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संग: परं व्रजेत. हरे कृष्ण मंत्र का जाप करने मात्र से, व्यक्ति भौतिक अस्तित्व के बंधन से मुक्त हो जाता है और इस प्रकार घर, वापस भगवान के पास लौटने के योग्य हो जाता है.
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, नवाँ सर्ग, अध्याय 14 – पाठ 48