आध्यात्मिक संसार में यौन जीवन का कोई महत्व नहीं है.
भौतिक संसार में जब कभी भी अच्छा वातावरण होता है, तो भौतिकवादी व्यक्तियों के चित्त में तुरंत काम वासना जागृत हो जाती है. यह प्रवृत्ति इस भौतिक संसार में हर जगह मौजूद है, न केवल इस धरती पर बल्कि उच्चतर ग्रह प्रणालियों में भी. आध्यात्मिक संसार का वर्णन भौतिक संसार में रहने वाले जीवों के चित्त पर इस वातावरण के प्रभाव के ठीक विपरीत है. वहाँ की स्त्रियाँ इस भौतिक संसार की स्त्रियों से सैकड़ों और हज़ारों गुना अधिक सुंदर हैं, और आध्यात्मिक वातावरण भी कई गुना बेहतर है. तथापि सुंदर वातावरण होने के बाद भी, निवासियों के चित्त उत्तेजित नहीं होते क्योंकि आध्यात्मिक संसार, वैकुंठ ग्रह में, निवासियों के मष्तिष्क भगवान की महिमा के जाप की आध्यात्मिक तरंगों में इतने खोए होते हैं कि उस आनंद का स्थान कोई दूसरा सुख नहीं ले सकता, चाहे वह यौन सुख हो, जो कि भौतिक संसार में सारे सुखों की पराकाष्ठा है. दूसरे शब्दों में, वैकुंठ संसार में, उसके बेहतर वातावरण और सुविधाओं के बावजूद, यौन जीवन के लिए कोई उत्कंठा नहीं पाई जाती. जैसाकि भगवद्-गीता (2.59) में कहा गया है, परम दृष्ट्वा निवर्तते: निवासी आध्यात्मिक रूप से इतने प्रबुद्ध हैं कि इस तरह की आध्यात्मिकता की उपस्थिति में, यौन जीवन महत्वहीन है.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), "श्रीमद् भागवतम्", चौथा सर्ग, अध्याय 06 - पाठ 30