वैदिक नियम के अनुसार, तलाक नाम की कोई चीज़ नहीं होती.
एक स्त्री कितनी भी महान हो, उसे सभी परिस्थितियों में अपने पति के आदेश को निभाने और उसे प्रसन्न करने के लिए तैयार होना चाहिए. फिर उसका जीवन सफल होगा. यदि पत्नी अपने पति के समान ही चिड़चिड़ी हो जाती है, तो उनका घरेलू जीवन का बाधित होना या अंततः संपूर्ण रूप से बिखर जाना अवश्यंभावी होता है. आधुनिक समय में, पत्नी कभी भी समर्पित नहीं होती, और इसलिए घरेलू जीवन छोटी सी घटनाओं से भी टूट जाता है. पत्नी या पति दोनों ही तलाक के कानून का लाभ ले सकते हैं. यद्यपि, वैदिक नियम के अनुसार तलाक के नियम जैसी कोई वस्तु नहीं होती, और एक स्त्री को अपने पति की इच्छानुसार समर्पित होने के लिए प्रशिक्षित होना चाहिए. पश्चिमी लोग बहस करते हैं कि यह पत्नी के लिए दासता की मानसिकता है, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है; यह वह युक्ति है जिससे स्त्री अपने पति का हृदय जीत सके, भले ही वह कितना भी चिड़चिड़ा या दुष्ट हो.
स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , नवाँ सर्ग, अध्याय 3 – पाठ 10