“भगवान के परम व्यक्तित्व, कृष्ण, विभिन्न विस्तारों में प्रकट होते हैं, जैसा कि ब्रम्हसंहिता (5.39) में कहा गया है:

रामादि-मूर्तिषु काल-नियमेन तिष्ठान नानावतारम आकारोद् भुवनेषु किंतु
कृष्णः स्वयं समाभवत परमः पुमन यो गोविंदम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि

“मैं भगवान के परम व्यक्तित्व गोविंद की उपासना करता हूँ, जो सदैव राम, नृसिंह जैसे विभिन्न और कई उप अवतारों में भी स्थित होते हैं, किंतु कृष्ण के रूप में ज्ञात भगवान का मूल परम व्यक्तित्व कौन है और जो व्यक्तिगत रूप से भी अवतार लेते हैं.” कृष्ण ने, जो विष्णु-तत्व हैं, स्वयं को कई विष्णु रूपों में विस्तारित किया है, जिनमें से भगवान रामचंद्र एक हैं. हम जानते हैं कि विष्णुत्त्व का वाहन पारलौकिक पक्षी गरुड़ होता है और जिनके चार हाथों में विभिन्न अस्त्र होते हैं. इसलिए हमें संदेह हो सकता है कि भगवान रामचंद्र समान वर्ग में हैं या नहीं, क्योंकि उनके वाहन हनुमान हैं, गरुड़ नहीं, और उनके चार हाथ भी नहीं थे, न ही शंख, चक्र गदा और पद्म थे. अतः यह श्लोक स्पष्ट करता है कि रामचंद्र कृष्ण के समान (रामादी-मूर्तिषु काल) ही श्रेष्ठ हैं. यद्यपि कृष्ण भगवान के मूल परम व्यक्तित्व हैं, रामचंद्र उनसे भिन्न नहीं हैं. रामचंद्र भौतिक प्रकृति के गुणों से अप्रभावित रहते हैं, और इसलिए वे प्रशान्त हैं, उन गुणों से वे कभी विचलित नहीं होते.”

अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, पाँचवाँ सर्ग, अध्याय 19 – पाठ 4

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