अर्जुन भगवद् गीता का माध्यम थे जबकि उनके पोते परीक्षित श्रीमद् भागवतम् के लिए माध्यम बने.
परम भगवान अपने सच्चे भक्तों के प्रति बड़े दयालु हैं और सही समय पर ऐसे भक्तों को अपने पास बुला लेते हैं और इस प्रकार भक्तों के लिए शुभ परिस्थिति का निर्माण करते हैं. महाराज परीक्षित भगवान के सच्चे भक्त थे, और ऐसा कोई कारण नहीं था कि वे क्लांत, भूखे और प्यासे हों क्योंकि भगवान का भक्त ऐसी शारीरिक बाध्यताओं से चिंतित नहीं होता. लेकिन भगवान की इच्छा होने पर, एसा भक्त भी स्पष्ट रूप से क्लांत और प्यास से पीड़ित हो सकता है ताकि बस उसकी सांसारिक गतिविधियों के त्याग की परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाएँ.
परम भगवान तक वापस जाने की योग्यता से पहले व्यक्ति को सांसारिक संबंधों की सभी आसक्तियाँ त्यागनी होंगी, और जब कोई भक्त सांसारिक प्रसंगों में बहुत अधिक खो जाता है, तो भगवान उदासीनता उपजाने के लिए कोई कारण उत्पन्न करते हैं. परम भगवान अपने भक्त को कभी नहीं भूलते, भले ही वह तथाकथित सांसारिक उलझनों में खोया हो. कभी-कभी वे एक अटपटी परिस्थिति बना देते हैं, और भक्त सभी सांसारिक प्रसंगों को त्यागने के लिए बाध्य हो जाता है. भक्त प्रभु के संकेत से समझ सकता है, लेकिन अन्य लोग इसे प्रतिकूल और निराशाजनक मानते हैं. महाराज परीक्षित को भगवान कृष्ण द्वारा श्रीमद्-भागवतम् के प्रकटन का माध्यम बनना था, जैसे उनके पितामह अर्जुन भगवद्-गीता के माध्यम थे. यदि अर्जुन को भगवान की इच्छा से पारिवारिक स्नेह का भ्रम नहीं होता, तो स्वयं भगवान द्वारा भागवद्-गीता का कथन नहीं किया जाता. इसी तरह, यदि महाराज परीक्षित इस समय थकान, भूख औऱ प्यास से व्याकुल न होते तो श्रीमद्-भागवतम् के प्रमुख विद्वान श्रील शुकदेव गोस्वामी द्वारा श्रीमद्-भागवतम् नहीं कही जाती.
स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 18 - पाठ 24-25