वैदिक सभ्यता में राजतंत्र को पसंद किया जाता है.

यदि सरकार अस्थिर और अनियमित हो, तो लोगों के लिए भय का संकट होता है. वर्तमान समय में लोगों द्वारा सरकार के कारण यह खतरा सदैव बना रहता है. तथाकथित लोगों की सरकार में कोई भी प्रशिक्षित क्षत्रिय राजा के रूप में नहीं होता; जैसे ही कोई शक्तिशाली वोट पा लेता है, वह शास्त्रों पारंगत ब्राम्हणों से प्रशिक्षित हुए बिना ही मंत्री या राष्ट्रपति बन जाता है. निश्चित ही, हम देखते हैं कि कुछ देशों में सरकार अलग-अलग पार्टियों में बदलती रहती है, और इसलिए सरकार में प्रभारी व्यक्ति नागरिक प्रसन्न हैं या नहीं, इसकी चिंता करने के बजाए अपने पदों की रक्षा करने में अधिक उत्सुक होते हैं. वैदिक सभ्यता में राजतंत्र को अधिक पसंद किया जाता है. लोगों को भगवान रामचंद्र का शासन, महाराज युधिष्ठिर का शासन और महाराज परीक्षित, महाराज अंबरीष और महाराज प्रह्लाद का शासन अच्छा लगता था. किसी राजा के अधीन सुशासन के अनेक उदाहरण हैं. धीरे-धीरे लोकतांत्रिक सरकार लोगों की आवश्यकता के प्रति अनुकूलता खोती जा रही है, और इसलिए कुछ पार्टियाँ किसी तानाशाह को चुनने का प्रयास कर रही हैं. तानाशाही राजतंत्र के समान ही है किंतु किसी प्रशिक्षित नेता के बिना. वास्तव में लोग प्रसन्न होंगे जब कोई प्रशिक्षित नेता, भले ही वह राजा हो या तानाशाह हो, सरकार का नियंत्रण रखेगा और आधिकारिक शास्त्रों के मानक नियमों के अनुसार लोगों पर शासन करेगा.

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , नवाँ सर्ग, अध्याय 13 – पाठ 12