सामान्य धार्मिक गतिविधियाँ निभाने और आध्यात्मिक सेवा में बहुत बड़ा अंतर है. धार्मिक गतिविधियाँ निभा कर कोई व्यक्ति आर्थिक विकास कर सकता है, ऐंद्रिक तृप्ति या मुक्ति पा सकता है (परमात्मा के अस्तित्व में विलीन हो जाना), लेकिन पारलौकिक आध्यात्मिक सेवा के परिणाम ऐसे अस्थायी लाभों से पूरी तरह से भिन्न होते हैं. भगवान की आध्यात्मिक सेवा चिरस्थायी होती है, और इसका आनंद पारलौकिक रूप से बढ़ता जाता है. इसलिए आध्यात्मिक सेवा के परिणाम और धार्मिक अनुष्ठानों के परिणामों में बहुत बड़ा अंतर होता है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान चैतन्य, स्वर्ण अवतार की शिक्षाएँ”, पृ. 349
(Visited 28 times, 1 visits today)
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •