ध्रुवलोक नामक, ध्रुवतारा, ब्रम्हांड की धुरी है, और सभी ग्रह इसी ध्रुवतारे की परिक्रमा में ही गति करते हैं.
विचारक, ज्ञानी, भगवान के परम व्यक्तित्व के बारे में सैकड़ों सहस्त्रों वर्षों से चिंतन कर रहे हैं, लेकिन भगवान के परम व्यक्तित्व की कृपा के बिना, कोई भी उनकी परम महिमा को नहीं समझ सकता. इस श्लोक में वर्णित सभी महान ऋषियों के अपने ग्रह ब्रम्हलोक के पास स्थित हैं, जहाँ भगवान ब्रम्हा चार महान ऋषियों– सनक, सनातन, सनंदन और सनत-कुमार– के साथ रहते हैं. ये ऋषि दक्षिणी नक्षत्र कहलाने वाले विभिन्न तारों में निवास करते हैं, जो ध्रुवतारे की परिक्रमा करते हैं. ध्रुवलोक नामक ध्रुवतारा इस ब्रम्हांड की धुरी है, और सारे ग्रह इसी ध्रुवतारे के चारों ओर गतिमान रहते हैं. इस एक ब्रह्मांड के भीतर जहाँ तक हम देख सकते हैं, सभी तारे ग्रह हैं. पश्चिमी सिद्धांत के अनुसार, सभी तारे अलग-अलग सूर्य हैं, लेकिन वैदिक जानकारी के अनुसार, इस ब्रह्मांड के भीतर केवल एक सूर्य है. सभी तथाकथित तारे अलग-अलग ग्रह हैं. इस ब्रह्मांड के अलावा, कई लाख अन्य ब्रह्मांड भी हैं, और उनमें से प्रत्येक में इसके ही समान असंख्य तारे और ग्रह हैं.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, चतुर्थ सर्ग, अध्याय 29 – पाठ 44