जितना अधिक व्यक्ति यौन सुख का आसक्त होता है, उतनी ही शीघ्रता से उसकी मृत्यु होने की आशंका होती है.

योगी और परलोकवादी जो अधिक समय तक जीवित रहना चाहते हैं वे स्वयं को वीर्य स्खलन से दूर रखते हैं. जो व्यक्ति वीर्य के स्खलन से जितना भी परहेज कर सकता है, उतना ही वह मृत्यु की समस्या से दूर रह सकता है. ऐसे कई योगी हैं जो इस प्रक्रिया द्वारा तीन सौ या सात सौ सालों तक जीवित रहते हैं, और भागवतम् में यह स्पष्ट कहा गया है कि वीर्य स्खलित करना भयानक मृत्यु का कारण है. वयक्ति जितना अधिक यौन सुख में आसक्त होगा, उसकी मृत्यु उतनी ही शीघ्र होने की संभावना होगी.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), "श्रीमद् भागवतम्", तृतीय सर्ग, अध्याय 26 - पाठ 57