परम सत्य सदैव के लिए सुंदर होता है.
कभी-कभी इस बारे में तर्क हो सकते हैं कि क्या “सत्य” और “सौंदर्य” संगत शब्द हैं. कोई स्वेच्छा से उश सत्य को व्यक्त करने के लिए सहमत हो सकता है, जिसे वह कह सकता है, लेकिन चूंकि सत्य हमेशा सुंदर नहीं होता है-बल्कि, यह अक्सर चौंकाने वाला और अप्रिय होता है- कोई एक ही समय में सत्य और सौंदर्य को कैसे व्यक्त करे? उत्तर में, हम सभी को यह सूचना दे सकते हैं कि “सत्य” और “सौंदर्य” संगत शब्द हैं. वास्तव में, हम सशक्त रूप से कह सकते हैं कि वास्तविक सत्य, जो निरपेक्ष है, हमेशा सुंदर होता है. सत्य इतना सुदर होता है कि वह सभी को आकर्षित करता है, जिसमें स्वयं सत्य भी शामिल है. सत्य इतना सुंदर होता है कि ऋषियों, संतों, और भक्तों ने सत्य के लिए सब कुछ का त्याग किया है. आधुनिक संसार के आदर्श महात्मा गांधी ने अपना जीवन सत्य के साथ प्रयोग करने में समर्पित कर दिया, और उनके सभी कर्म केवल सत्य की ओर लक्षित थे.
केवल महात्मा गांधी ही क्यों? हम में से हर एक को केवल सत्य की खोज करने की उत्कंठा है, क्योंकि सत्य केवल सुंदर नहीं है, बल्कि सर्वथा शक्तिशाली, सर्वथा संसाधनपूर्ण, सर्वथा -प्रसिद्ध, सर्व-त्यागी, और सर्वथा जानकार हैं. दुर्भाग्य से, लोगों को वास्तविक सच्चाई की कोई जानकारी नहीं है. वास्तव में, जीवन के सभी क्षेत्रों में 99.9 प्रतिशत पुरुष सत्य के नाम पर केवल असत्य का अनुसरण कर रहे हैं. हम वास्तव में सच्चाई की सुंदरता से आकर्षित होते हैं, लेकिन अनादि काल से हमें सत्य की तरह दिखने वाले असत्य के प्रेम की आदत है. इसलिए, सांसारिक व्यक्तियों के लिए “सत्य” और “सौंदर्य” असंगत शब्द हैं. सांसारिक सत्य और सौंदर्य को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है.
एक बार एक बहुत बलिष्ठ और मजबूत कद-काठी वाले लेकिन संदेहास्पद चरित्र वाले व्यक्ति को एक सुंदर कन्या से प्रेम हो गया. वह कन्या न केवल देखने में सुंदर थी बल्कि संत चरित्र वाली थी, और इस कारण वह उस वयक्ति के प्रयासों को पसंद नहीं करती थी. हालाँकि वह पुरुष, उसकी वासनापूर्ण इच्छाओं के कारण पीछे पड़ा रहा, और इसलिए कन्या ने उसे केवल सात दिन प्रतीक्षा करने के लिए कहा, और उसने उसके बाद का समय तय कर दिया जब वह व्यक्ति उससे मिल सके. पुरुष सहमत हो गया, और बहुत आशा के साथ निश्चित समय की प्रतीक्षा करने लगा.
हालाँकि, संत स्वभाव वाली उस लड़की ने, परम सत्य की वास्तविक सुंदरता को प्रकट करने के लिए, बहुत ही शिक्षाप्रद तरीका अपनाया. उसने पेट साफ करने वाली विरेचक औषधि बहुत अधिक मात्र में ली, और सात दिनों तक उसे पेचिश आते रहे और वह जो भी खाती उसे उल्टियाँ आ जाती. और तो और, उसने सार मल और उल्टी कुछ बर्तनों में रख लिए. विरेचक औषधियों के कारण तथाकथित सुंदर कन्या बहुत दुबली और एक कंकाल के समान हो गई, उसका रंग सांवला हो गया, और उसकी सुंदर आँखें धंसने लगीं. इस प्रकार मिलने वाले दिन वह उस उत्सुक पुरुष की प्रतीक्षा में लग गई. वह पुरुष बढ़िया वस्त्रों में और सभ्यतापूर्वक वहाँ आया और प्रतीक्षा कर रही उस कुरूप कन्या से उस सुंदर कन्या के बारे में पूछा जिससे उसे मिलना था. पुरुष उस कन्या को नहीं पहचान सका जिसे उसने उसी खूबसूरत लड़की के रूप में देखा था, और जिसके लिए वह पूछ रहा था; हालांकि उस कन्या ने बार-बार अपनी पहचान का दावा किया, लेकिन उसकी दयनीय स्थिति के कारण वह उसे पहचान नहीं पा रहा था. अंततः कन्या ने उस बलिष्ठ व्यक्ति को कहा कि उसने अपने सौंदर्य की सामग्रियों को अलग करके बर्तनों में इकट्ठा करके रखा है. उसने उसे यह भी बताया कि वह सौंदर्य के उस रस का आनंद भी ले सकता है. जब उस सांसारिक व्यक्ति ने सौंदर्य के रस को देखने की इच्छा दिखाई, उसे मल और उल्टी के उस संग्रह तक ले जाया गया, जिसमें से असह्य दुर्गंध आ रही थी. इस प्रकार उसे सौंदर्य-रस की पूरी कहानी पता लग गई. अंततः, उस संत सदृश कन्या की महिमा से, निचले चरित्र का यह पुरुष छाया और तत्व के बीच अंतर जान पाया, और इस तरह उसे चेतना आई. इस व्यक्ति की स्थिति हम में से हर एक की स्थिति के समान थी जो झूठी, भौतिक सुंदरता से आकर्षित होते हैं. ऊपर उल्लिखित कन्या का भौतिक शरीर उसके मन की इच्छाओं के अनुसार सुंदरता से विकसित हुआ था लेकिन वास्तव में वह उस अस्थायी भौतिक शरीर और मन से अलग थी. वास्तव में वह एक आध्यात्मिक किरण थी, और वैसा ही वह प्रेमी था, जो उसकी झूठी त्वचा से आकर्षित हुआ था.
सांसारिक बुद्धिजीवी और सौंदर्यवादी, हालाँकि बाहरी सुंदरता और सापेक्ष सत्य के आकर्षण से बहक जाते हैं और आध्यात्मिक किरण से अनजान होते हैं, जो कि एक साथ ही सत्य और सौंदर्य दोनों होती है. आध्यात्मिक किरण इतनी सुंदर है कि जब यह तथाकथित सुंदर शरीर को छोड़ देती है, जो वास्तव में मल और उल्टी से भरा होता है, तो कोई भी उस शरीर को छूना नहीं चाहता, भले ही वह एक महंगी पोशाक से सजाया गया हो. हम सभी एक झूठे, सापेक्ष सत्य का अनुसरण कर रहे हैं, जो वास्तविक सौंदर्य से असंगत है. हालांकि, वास्तविक सौंदर्य स्थायी रूप से सुंदर होता है, जिसके सौंदर्य का मानक असंख्य वर्षों से एक ही है. वह आध्यात्मिक किरण अविनाशी है. बाहरी त्वचा का सौंदर्य कुछ ही घंटों में केवल शक्तिशाली विरेचक औषधि को लेने मात्र से नष्ट हो सकती है, लेकिन सत्य की सौंदर्य अनश्वर है और सदा समान रहता है. दुर्भाग्य से, सांसारिक कलाकार और बुद्धिजीवी आध्यात्म की इस सुंदर किरण से अनभिज्ञ ही रहते हैं. वे उस संपूर्ण अग्नि से भी अनभिज्ञ हैं जो इन आध्यात्मिक किरणों का स्रोत है, और वे किरणों और उस अग्नि के बीच के संबंध से अनभिज्ञ हैं, जो पारलौकिक का रूप ले लेती है. जब सर्वशक्तिमान की कृपा से उन लीलाओं को यहां प्रदर्शित किया जाता है, तो मूर्ख लोग जो अपनी इंद्रियों से परे नहीं देख सकते हैं, वे भ्रमित होकर ऊपर वर्णित मल और उल्टी की उत्पत्ति को सत्य और सौंदर्य की लीलाएँ समझते हैं. इसलिए निराशा में वे यह पूछते हैं कि सत्य और सौंदर्य को एक साथ कैसे रखा जा सकता है. सांसारिक व्यक्ति यह नहीं जानते कि संपूर्ण आध्यात्मिक सत्ता ही सुंदर व्यक्ति है जो सभी वस्तुओं को आकर्षित करता है. वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि वह प्रमुख पदार्थ है, प्रधान स्रोत है, और जो कुछ भी है उसका स्रोत है. संपूर्ण आत्मा का अंश होते हुए, असीम आध्यात्मिक किरणें गुणात्मक रूप से सौंदर्य और अनंतता में समान हैं. अंतर बस इतना है कि संपूर्ण अनादि काल से संपूर्ण है और अंश अनादि काल से अंश हैं. हालाँकि, दोनों ही परम सत्य, परम सौंदर्य, परम ज्ञान, परम ऊर्जा, परम त्याग, और परम एश्वर्य हैं. यद्यपि सबसे बड़े सांसारिक कवि या बुद्धिजीवी द्वारा लिखा गया, कोई भी साहित्य जो परम सत्य और सौंदर्य का वर्णन नहीं करता है, वह केवल सापेक्ष सच्चाई के मल और उल्टी का भंडार मात्र है. सच्चा साहित्य वह है जो सर्वोच्च के परम सत्य और सौंदर्य का वर्णन करता हो.
स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), आत्म साक्षात्कार का विज्ञान, पृ. 41