समय (काल) का प्रभाव अलौकिक स्तर पर कार्यशील नहीं होता.
विनाशक काल, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की उसकी उत्पत्ति द्वारा आकाशीय देवताओं तक पर भी नियंत्रण रखता है, अलौकिक स्तर पर कार्य नहीं करता. समय का प्रभाव जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और रोग द्वारा प्रदर्शित होता है, और इन चार सिद्धांतो की भौतिक स्थितियाँ भौतिक ब्रम्हांड के किसी भी भाग में, ब्रम्हलोक तक, सभी जगहों में व्याप्त है, जहाँ के निवासियों की जीवन की अवधि हमें आश्चर्यजनक लगती है. अजेय समय तो ब्रम्हा की मृत्यु भी निष्पादित करता है, अतः इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और वरुण जैसे देवताओं के बारे में क्या कहना? सांसारिक जीवों पर विभिन्न देवताओं द्वारा निर्देशित खगोलीय प्रभाव भी इसकी अनुपस्थिति से सुस्पष्ट है. भौतिक अस्तित्व में, जीवित प्राणी आसुरी प्रभाव से भय करते हैं, लेकिन अलौकिक स्तर पर एक उपासक के लिए ऐसा कोई भय नहीं है. जीवित प्राणी भौतिक प्रकृति के विभिन्न रूपों के प्रभाव के अधीन अपने भौतिक शरीर को विभिन्न आकारों और रूपों में बदलते हैं, लेकिन अलौकिक अवस्था में उपासक गुणातीत होता है, या अच्छाई, कामोन्माद और अज्ञान के भौतिक रूपों से उच्चतर होता है. इस प्रकार “मैं अपने लिए दृश्यमान सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ” का कृत्रिम अहंकार वहाँ नहीं उपजता.
स्रोत:अभय भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, दूसरा सर्ग, अध्याय 2- पाठ 17.