वयक्ति पृथ्वी का अध्ययन करके सहिष्णुता की कला सीख सकता है।

पृथ्वी सहिष्णुता का प्रतीक होती है। गहरे तेल-खनन, आणविक विस्फोटों, प्रदूषण इत्यादि द्वार, पृथ्वी को आसुरी जीवों द्वारा लगातार सताया जाता है। कभी-कभी हरे-भरे वनों को वयावसायिक हितों के लिए काट दिया जाता है, और इस प्रकार एक बंजर भूमि को रच दिया जाता है। कभी-कभी पृथ्वी की सतह पाशविक युद्ध में लड़ रहे सैनिकों के रक्त में भीग जाती है। तब भी, इन सब व्यवधानों के होते हुए भी, पृथ्वी जीवों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना जारी रखती है। इस प्रकार वयक्ति पृथ्वी का अध्ययन करके सहिष्णुता की कला सीख सकता है। उसी प्रकार, एक शालीन व्यक्ति, भले ही उसे अन्य जीवों द्वारा सताया जा रहा हो, को यह समझना चाहिए कि उसे कष्ट देने वाले लोग भगवान के नियंत्रण के अधीन बेबस कार्य कर रहे हैं, और इस प्रकार उसे अपने मार्ग से कभी भी पथभ्रष्ट नहीं होना चाहिए।

स्रोत – अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद भागवतम”, ग्यारहवाँ सर्ग, अध्याय 7 – पाठ 37.