मानव एक सामाजिक प्राणी है और रूपवान लिंग से उसका अप्रतिबंधित मेलजोल पतन की ओर ले जाता है

बलवान इंद्रिय-ग्रामो विध्वंसम् अपि कर्षति (भगी. 9.19.17). कहा जाता है कि इंद्रियां इतनी मतवाली और प्रबल होती हैं कि वे सबसे समझदार और विद्वान व्यक्ति को भी भटका सकती हैं. इसलिए यह सलाह दी जाती है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ भी अकेले नहीं रहना चाहिए. विध्वंसम् अपि कर्षति का अर्थ है कि सबसे ज्ञानी व्यक्ति भी कामुक इच्छाओं के वशीभूत हो सकते हैं. मैत्रेय ने ब्रह्मा की ओर से इस विसंगति को बताने में संकोच किया, जो अपनी ही पुत्री पर यौन आसक्त थे, लेकिन फिर भी उन्होंने इसका उल्लेख किया क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है, और स्वयं ब्रह्मा जीवंत उदाहरण है, हालांकि वे आदिकालीन प्राणी हैं और पूरे ब्रम्हांड में सबसे ज्ञानी हैं. यदि स्वयं ब्रम्हा काम वासना के वशीभूत हो सकते हैं, तो अन्य का तो कहना ही क्या, जो इतने सारे सांसारिक संकटों से ग्रस्त हैं? ब्रम्हा की यह असाधारण अमरता किसी विशिष्ट कल्प में घटित मानी जाती है, किंतु ऐसा उस कल्प में नहीं हो सकता होगा जिसमें ब्रम्हा को भागवतम् पर शिक्षा देने के बाद स्वयं भगवान ने श्रीमद् भागवतम् के चार आवश्यक श्लोक कहे थे, और उन्हें वर दिया था कि वे किसी भी कल्प में आसक्ति के वशीभूत नहीं होंगे. यह इंगित करता है कि श्रीमद-भागवतम् का श्रवण करने से पहले ऐसा संभव है कि वे इस तरह की कामुकता का शिकार हो गए होंगे, लेकिन श्रीमद-भागवतम् को सीधे भगवान से सुन लेने के बाद, ऐसी असफलताओं की संभावना नहीं थी.

हालाँकि, व्यक्ति को ऐसी घटना का गंभीर संज्ञान लेना चाहिए. मानव सामाजिक प्राणी है, और रूपवान लिंग से उसका अप्रतिबंधित मेलजोल पतन की ओर ले जाता है. पुरुष और स्त्रियों की सामाजिक स्वतंत्रता, विशेष रूप से युवा वर्ग के बीच, निश्चित रूप से आध्यात्मिक प्रगति के मार्ग में एक बड़ी बाधा है. भौतिक बंधन केवल यौन दासता के कारण होता है, और इसलिए स्त्री और पुरुष का अप्रतिबंधित मेलजोल निश्चित रूप से एक महान बाधा है. मैत्रेय ने ब्रह्मा के संदर्भ में यह उदाहरण देते हुए कहा कि यह बहुत बड़ा खतरा है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), "श्रीमद् भागवतम्", तृतीय सर्ग, अध्याय 12 - पाठ 28