मन हमें हमेशा ऐसा करने या वैसा करने को कहता रहता है.
एक सरल हथियार है जिसके साथ मन को जीता जा सकता है – उपेक्षा. मन हमेशा हमें यह या वह करने के लिए कह रहा है; इसलिए हमें मन के आदेशों की अवज्ञा करने में बहुत कुशल होना चाहिए. धीरे-धीरे मन को आत्मा के आदेश मानने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए. ऐसा नहीं कि व्यक्ति को मन के आदेश मानना चाहिए. श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहा करते थे कि मन को नियंत्रित करने के लिए व्यक्ति को जागते ही और फिर सोने से पहले कई बार जूतों से पीटना चाहिए. इस प्रकार व्यक्ति मन को नियंत्रित कर सकता है. सभी शास्त्रों का यही निर्देश है. यदि व्यक्ति ऐसा नहीं करता, तो वह मन की आज्ञा मानने के लिए अभिशप्त है. एक अन्य प्रामाणिक प्रक्रिया आध्यात्मिक गुरु के आदेशों का क़ड़ाई से पालन करना और प्रभु की सेवा में संलग्न होना है. तब मन स्वतः ही नियंत्रण में आ जाएगा. श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रील रूप गोस्वामी को निर्देश दिया था:
ब्रह्माण्ड भ्रमते कोना भाग्यवान जीव
गुरु-कृष्ण-प्रसाद पाया भक्ति-लता-बीज
जब कोई गुरु और कृष्ण भगवान के परम व्यक्तित्व की दया से आध्यात्मिक सेवा का बीज प्राप्त करता है, तब उसका वास्तविक जीवन शुरू होता है.
स्रोत: अभय भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण – अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पांचवाँ सर्ग, अध्याय 11 – पाठ 17