भौतिक संसार में यौन जीवन को आवश्यकता से अधिक प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए.

यौनांग और प्रजनन का आनंद पारिवारिक बोझ की व्यग्रताओं का प्रतिकार करता है. व्यक्ति प्रजनन नहीं कर सकता, यदि प्रभु कृपा से जननांगों की सतह पर, एक परत, एक आनंद दायक तत्व नहीं होता. यह तत्व इतना प्रबल आनंद देता है कि वह पारिवारिक कष्ट की व्यग्रताओं का पूरी तरह प्रतिकार करता है. व्यक्ति इस आनंद दायक तत्व से इतना मोहित हो जाता है कि वह एक संतान पाकर संतुष्ट नहीं होता, बल्कि केवल इस आनंद दायक तत्व के लिए ही, उनका पालन-पोषण संबंधी बड़े जोखिम के बावजूद संतानों की संख्या बढ़ाता जाता है. हालांकि यह आनंद दायक तत्व मिथ्या नहीं है, क्योंकि वह भगवान की पारलौकिक काया से उत्पन्न होता है. दूसरे शब्दों में, आनंद दायक तत्व एक वास्तविकता है, लेकिन भौतिक संदूषण के कारण वह विकृति का रूप ले चुका है. भौतिक संसार में, भौतिक संपर्क के कारण यौन जीवन कई संकटों का कारण है. इसलिए, भौतिक संसार में योन जीवन को आवश्यकता से अधिक प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए. भौतिक दुनिया में भी संतान पैदा करने की आवश्यकता होती है, लेकिन बच्चों की ऐसी पीढ़ी को आध्यात्मिक मूल्यों के लिए पूरी जिम्मेदारी के साथ विकसित किया जाना चाहिए. जीवन के आध्यात्मिक मूल्यों को भौतिक अस्तित्व के मानव रूप में महसूस किया जा सकता है, और मानव को परिवार नियोजन आध्यात्मिक मूल्यों के संदर्भ में अपनाना चाहिए, न कि अन्य संदर्भ में. गर्भ निरोधकों, आदि के उपयोग द्वारा परिवार सीमित रखने का तुच्छ रूप, भौतिक संदूषण का स्थूल प्रकार है. इन साधनों का उपयोग करने वाले भौतिकवादी आध्यात्मिक महत्व को जाने बिना, कृत्रिम साधनों से जननांगों पर परत की आनंद शक्ति का पूरी तरह से उपयोग करना चाहते हैं. और आध्यात्मिक मूल्यों के ज्ञान के बिना, कम बुद्धिमान व्यक्ति जननांगों के केवल भौतिक इंद्रिय सुख का उपयोग करने का प्रयास करता है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), "श्रीमद् भागवतम्", द्वितीय सर्ग, अध्याय 6 - पाठ 8