ब्रम्हांड में ग्रहों का स्थान
“इस एक ब्रम्हांड के भीतर चौदह ग्रह मंडल हैं, और जीव विभिन्न ग्रहों पर विभिन्न शारीरिक रूप लेकर विचर रहे हैं. कर्म के अनुसार, जीव कभी ऊपर औऱ कभी नीचे जाते हैं. निचले ग्रह मंडल भूर्लोक कहलाते हैं, मध्य के ग्रह मंडल भुवर्लोक कहलाते हैं, और ब्रम्हांड के सर्वोच्च ग्रह मंडल, ब्रम्हलोक (सत्यलोक) तक के सारे उच्च ग्रह मंडल स्वर्गलोक कहलाते हैं. और वे सभी भगवान की काया पर स्थित हैं. दूसरे शब्दों में, ब्रम्हांड में कोई भी ऐसा नहीं है जिसका संबंध भगवान से न हो. अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले अंतरिक्षयात्री श्रीमद्-भगवतम् से जानकारी ले सकते हैं कि अंतरिक्ष में ग्रह मडलों के चौदह भाग हैं. इस स्थिति की गणना भूमंडलीय ग्रह प्रणाली से की जाती है, जिसे भूर्लोक कहा जाता है. भूर्लोक के ऊपर भुवर्लोक है, और भुवर्लोक के ऊपर स्वर्गलोक, महार्लोक, जनलोक, तपलोक, और सत्यलोक हैं, ये उच्चतर सात लोक, या ग्रह मंडल हैं. और इसी प्रकार से, सात निम्नतर ग्रह मंडल होते हैं, जिन्हें अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल लोक कहा जाता है. से सभी ग्रह मंडल संपूर्ण ब्रम्हांड में फैले हुए हैं, जिसका विस्तार दो अरब मील के दो अरब गुना स्थान जितना है. आधुनिक अंतरिक्ष यात्री धरती से कुछ हज़ार मील तक ही यात्रा कर पाते हैं, और इसलिए आकाश में उनकी यात्रा का प्रयास महासमुद्र के तट पर शुशु के खेल जैसा ही है. हमें जिस ब्रम्हांड में रखा गया है उसके अतिरिक्त असंख्य ब्रम्हांड हैं, और इन सभी भौतिक ब्रम्हांडों का विस्तार आध्यात्मिक आकाश का केवल एक बहुत छोटे हिस्से तक है. समस्त भौतिक ब्रम्हांड देवीधाम कहलाता है, औऱ उसके ऊपर शिवधाम है, जहाँ भगवान शिव औऱ उनकी पत्नी पार्वती का शाश्वत निवास है. उस ग्रह मंडल के ऊपर आध्यात्मिक आकाश है जिसमें असंख्य आध्यात्मिक ग्रह स्थित हैं जिन्हें वैकुंठ कहते हैं. इन वैकुंठ ग्रहों के ऊपर कृष्ण का ग्रह गौलोक है. गौलोक वृंदावन सभी भौतिक और आध्यात्मिक ग्रहों के योग से भी बड़ा है. जो कृष्ण के विस्तार नारायण के भक्त होते हैं उन्हें वैकुंठ ग्रह मिलते हैं, लेकिन गौलोक वृंदावन पहुँचना बहुत कठिन है. वास्तव में, उस ग्रह पर केवल वेे व्यक्ति पहुँच सकते हैं जो भगवान चैतन्य या भगवान श्री कृष्ण को समर्पित हैं.
स्रोत:”अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) श्रीमद् भगवतमं, द्वितीय सर्ग, पर्व 5- पाठ 38, 40 और 41.
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), भगवान चैतन्य की शिक्षाएँ, स्वर्णिम अवतार, पृष्ठ 168.
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2007 संस्करण, अंग्रेजी), भगवान कपिल की शिक्षाएँ, देवाहुतु का पुत्र, पृष्ठ 15.”