जीव का बोध तब सक्रिय हो जाता है जब स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर विकसित हो जाते हैं.
जब कोई जीव गर्भ में होता है, तो उसका स्थूल शरीर, दस इंद्रियाँ और मष्तिष्क पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते. ऐसे समय उन्हें इंद्रिय के पात्र व्यवधान नहीं पहुँचाते. स्वप्न में कोई युवक किसी युवती की उपस्थिति का अनुभव कर सकता है क्योंकि उस समय इंद्रिया सक्रिय होती हैं. अविकसित इंद्रियों के कारण किसी छोटे बालक या किशोर को युवती का सपना नहीं दिखेगा. युवावस्था में इंद्रिया सक्रिय होती हैं भले ही कोई नींद में हो, और हालांकि भले ही कोई युवती उपस्थित नहीं हो, तब भी इंद्रियाँ प्रतिक्रिया कर सकती हैं और वीर्य स्खलन (स्वप्न दोष) हो सकता है. सूक्ष्म और स्थूल शरीर की गतिविधियाँ इस पर निर्भर होती हैं कि विकास की स्थिति क्या है. चंद्रमा का उदाहरण बहुत उपयुक्त है. अमावस्या की रात में, पूर्ण प्रकाशमय चंद्रमा उपस्थित होता है, लेकिन परिस्थितियों के कारण वह अनुपस्थित अनुभव होता है. उसी प्रकार, जीवों की इंद्रियाँ उपस्थित होती हैं, लेकिन वे तभी सक्रिय होती हैं जब स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर परिपक्व हो जाएँ. स्थूल शरीर की इंद्रियाँ जब तक विकसित न हो जाएँ, वे सूक्ष्म शरीर पर कोई गतिविध नहीं करेंगी. उसी प्रकार, सूक्ष्म शरीर में कामना की अनुपस्थिति के कारण, हो सकता है कि स्थूल शरीर में कोई विकास न हो.
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण – अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, चतुर्थ सर्ग, अध्याय 29 – पाठ 72