आसुरी जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए गर्भाधान प्रक्रिया का पालन करना महत्वपूर्ण है.

पिछले दिनों में केवल दो ही राक्षस (हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष) थे–जो दिति से पैदा हुए थे–फिर भी बहुत सी बाधाएँ थीं. आज के दिन, विशेषकर कलियुग में, यह बाधाएँ हमेशा दृश्यमान हैं, जिससे पता चलता है कि आसुरी जनसंख्या निश्चित ही बढ़ी है. आसुरी जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए, वैदिक सभ्यता ने सामाजित जीवन के बहुत से नियम और कानून बनाए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अच्छी संतानें पाने के लिए गर्भाधान प्रक्रिया है. भगवद-गीता में अर्जुन ने कृष्ण को सूचित किया कि यदि अवांछित जनसंख्या (वर्ण-संकर) है, तो पूरा संसार नर्क बन जाएगा. लोग संसार में शांति के लिए बहुत चिंतित हैं, लेकिन, दिति से पैदा हुए दैत्यों की तरह, गर्भाधान समारोह के लाभ के बिना बहुत से अनचाहे बच्चे जन्म लेते हैं. दिति इतनी कामान्ध थी कि एक समय उसने अपने पति को संभोग के लिए विवश किया जो कि अशुभ था, और इसलिए व्यवधान पैदा करने के लिए दैत्य पैदा हुए. संतान पाने के लिए यौन जीवन जीने के लिए, व्यक्ति को अच्छी संतानें पाने की प्रक्रिया का पालन करना चाहिए; यदि प्रत्येक परिवार में, प्रत्येक गृहस्थ वैदिक प्रणाली का पालन करता है, तो फिर अच्छी संताने होंगी, दैत्य नहीं, और संसार में स्वतः ही शांति होगी. यदि हम सामाजिक शांति के लिए नियमों का पालन नहीं करते, तो हम शांति की आशा नहीं रख सकते. बल्कि, हमें प्राकृतिक नियमों की कठोर प्रतिक्रियाओं को झेलना पड़ेगा.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 17 – पाठ 15