आकाश में हम जो भी नक्षत्र देखते हैं, वह इस एक ब्रम्हांड के भीतर ही हैं
भगवद्-गीता (10.21) कृष्ण कहते हैं, नक्षत्राणां अहं शशि: “नक्षत्रों में मैं चंद्रमा हूँ.” इससे इंगित होता है कि चंद्रमा अन्य नक्षत्रों के समान है. वैदिक साहित्य हमें बताता है कि इस ब्रम्हांड में एक सूर्य है, जो गतिमान है. पश्चिमी अवधारणा कि आकाश में सभी नक्षत्र विभिन्न सूर्य हैं इसकी पुष्टि वैदिक साहित्य में नहीं की गई है. न ही हम अनुमान लगा सकते हैं कि ये नक्षत्र अन्य ब्रम्हांडों के सूर्य हैं, क्योंकि प्रत्येक ब्रम्हांड भौतिक तत्वों की विभिन्न परतों से ढँका होता है, और इसलिए भले ही ब्रम्हांड समूह में साथ होते हैं, हम एक ब्रम्हांड से दूसरे तक नहीं देख सकते. दूसरे शब्दों में, हम जो कुछ भी देखते हैं वह इस एक ब्रम्हांड में ही है. प्रत्येक ब्रम्हांड में एक भगवान ब्रम्हा होते हैं, और अन्य ग्रहों पर अन्य देवता होते हैं, लेकिन सूर्य एक ही होता है.
स्रोत – अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पाँचवा सर्ग, अध्याय 21 – पाठ 11