मैं कौन हूँ?
आपकी स्वाभाविक स्थिति यह है कि आप एक शुद्ध जीवित आत्मा हैं. इस भौतिक शरीर की पहचान आपके वास्तविक आत्म से नहीं की जा सकती; ना ही आपका मस्तिष्क आपकी वास्तविक पहचान है, ना ही बुद्धि, ना ही मिथ्या अहंकार. आपकी पहचान सर्वोच्च भगवान कृष्ण के अनन्त सेवक की है. आपकी स्थिति यही है कि आप पारलौकिक हैं. कृष्ण की श्रेष्ठ ऊर्जा स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक है, और हीन बाहरी ऊर्जा भौतिक है. चूँकि आप भौतिक ऊर्जा और आध्यात्मिक ऊर्जा के बीच अवस्थित हैं, आप छोर पर अवस्थित हैं. कृष्ण की सीमांत शक्ति से संबंधित होने के नाते, आप एक साथ कृष्ण से एकाकार हैं और अलग भी हैं. चूँकि आप आत्मा हैं, इसलिए कृष्ण से भिन्न नहीं हैं, और चूँकि आप कृष्ण के एक सूक्ष्म कण हैं, इसलिए आप उनसे भिन्न हैं.
स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण – अग्रेज़ी), “भगवान चैतन्य की शिक्षाएँ, स्वर्ण अवतार ”, पृष्ठ 64


 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	






