व्यक्ति पवित्र कैसे हो सकता है?

वास्तव में लोग राजनीति, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र और अन्य की चर्चा में अपना समय नष्ट करते हैं. वे ऐसा बहुत सा साहित्य पढ़ते हैं जो परम भगवान हरि का गुणगान नहीं करता, और इस प्रकार वे अपना समय गँवा देते हैं. यह कृष्ण चेतना आंदोलन सभी को पवित्र बनने का मौका दे रहा है। पुण्य-श्रवण-कीर्तनः. पैसा देना या गंगा में स्नान करना आवश्यक नहीं है. पवित्र बनने के लिए शास्त्रों में कई पवित्र गतिविधियों और कई प्रक्रियाओं का सुझाव दिया गया है.हालांकि, कलियुग में लोगों ने अपनी सारी शक्ति खो दी है. वे इतने पापी हैं कि इन सभी बताए गई विधियों से पवित्र बनने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता. एकमात्र साधन है कृष्ण के बारे में सुनना और उनके नाम का जप करना. कृष्ण ने हमें सुनने के लिए कान और बोलने के लिए एक जीभ दी है. हम एक सिद्ध आत्मा से सुन सकते हैं और इस तरह हमारे जीवन को परिपूर्ण कर सकते हैं. इस तरह हमें स्वयं को शुद्ध करने का अवसर दिया गया है.

जब तक हम शुद्ध नहीं होंगे, हम भक्त नहीं बन सकते. मानव जीवन शुद्धिकरण के लिए है. दुर्भाग्य से इस युग में लोगों को कृष्ण में कोई रुचि नहीं है, और वे एक के बाद अगले, और अगले जीवन में भौतिक अस्तित्व के माध्यम से पीड़ा भोगते रहते हैं. किसी एक जीवन में वे बहुत ऐश्वर्यशाली हो सकते हैं. वे अगले जीवन की चिंता नहीं करते. वे सोचते हैं, “मैं बस खाता पीता रहूँ और आनंद लूँ”. यह दुनिया भर में हो रहा है, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि लोग इस प्रकार गलतियां कर रहे हैं.नुनाम प्रमत्तः कुरुते विकर्मः (भ गी 5.5.4): लोग इन्द्रिय भोग से पागल हो गए हैं, और इसलिए वे सभी प्रकार की वर्जित वस्तुओं में संलग्न हैं.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2007 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान कपिल की शिक्षाएँ, देवाहुति के पुत्र”, पृ. 108