“यदि हम कर्म के अस्तित्व को हमारी वर्तमान गतिविधियों की प्रतिक्रियाएँ प्रदान करने वाले नियमों की प्रणाली के रूप में स्वीकार कर लेते हैं, तो हम स्वयं, अपनी प्रकृति के अनुसार, अपना भविष्य तय करेंगे. इस जीवन में हमारे सुख-दुख हमारे पूर्व कर्मों के अनुसार पहले ही निर्धारित और निश्चित किए जा चुके हैं, और देवता भी इसे नहीं बदल सकते. वे हमें अपने पिछले कर्मो के अनुसार नियत समृद्धि या निर्धनता, रोग या स्वास्थ्य, प्रसन्नता या दुःख अवश्य प्रदान करेंगे. यद्यपि, हम अब भी इस जीवन में एक पवित्र या अपवित्र कर्म का चयन करने की स्वतंत्रता बनाए रखते हैं, और हम जो चुनाव करते हैं वही हमारे भविष्य के दुख और आनंद को निर्धारित करेगा.

उदाहरण के लिए, यदि मैं अपने पिछले जीवन में पवित्र था, तो इस जीवन में देवता मुझे महान भौतिक संपदा प्रदान कर सकते हैं. किंतु मैं अपने धन को अच्छे या बुरे उद्देश्यों के लिए खर्च करने के लिए स्वतंत्र हूँ, और मेरा चुनाव मेरे भावी जीवन का निर्धारण करेगा. अतः, यद्यपि कोई भी इस जीवन में उसके कर्म के नियत परिणामों को नहीं बदल सकता है, अपितु हर व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा रखता है, जिसके द्वारा वह निर्धारित करता है कि उसकी भविष्य की स्थिति क्या होगी.”

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 24 – पाठ 15

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