इस भौतिक संसार में तथाकथित प्रेम और कुछ नहीं बल्कि यौन संतुष्टि है.
शब्द अनाथ-वर्ग बहुत महत्वपूर्ण है. नाथ का अर्थ “पति” है, और अ का अर्थ “के बिना” है. कोई युवा स्त्री जिसका पति न हो अनाथ कहलाती है, जिसका अर्थ है “जिसका कोई रक्षक नहीं है.” जैसे ही एक स्त्री यौवन की आयु प्राप्त करती है, वह तुरंत यौन इच्छा से बहुत अधिक उत्तेजित हो जाती है. इसलिए यह पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी बेटी का विवाह युवावस्था से पहले कर दे. अन्यथा वह पति के न होने से बहुत अधिक इंद्रियदमित होगी. जो कोई भी उस आयु में संभोग की उसकी इच्छा को पूरा करता है, वह संतुष्टि का एक बड़ा पात्र बन जाता है. यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब युवावस्था में एक स्त्री किसी पुरुष से मिलती है और पुरुष उसे यौन संतुष्टि देता है, तो वह उस पुरुष को जीवन भर प्रेम करेगी, फिर चाहे वह कोई भी हो. इस प्रकार इस भौतिक संसार में तथाकथित प्रेम यौन संतुष्टि के अलावा और कुछ नहीं है.
स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, चौथा सर्ग, अध्याय 25 – पाठ 42