संकीर्तन का अर्थ भगवान के पवित्र नाम का जाप होता है. हरे कृष्ण आंदोलन कोई नया आंदोलन नहीं है जैसा कि लोग त्रुटिवश कभी-कभी सोचते हैं. हरे कृष्ण आंदोलन भगवान ब्रम्हा के जीवन की प्रत्येक सहस्त्राब्दी में उपस्थित रहता है, और पवित्र नाम का जाप सभी उच्चतर ग्रह मंडलों में किया जाता है, जिनमें ब्रम्हलोक और चंद्रलोक शामिल हैं, कहने की आवश्यकता नहीं है कि गंधर्वलोक और अप्सरालोक भी शामिल हैं. संकीर्तन आंदोलन जो इस संसार में पाँच सौ वर्ष पहले चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रारंभ किया गया था, नया आंदोलन नहीं है. कभी कभी, हमारे दुर्भाग्य के कारण, यह आंदोलन रुक जाता है, लेकिन श्री चैतन्य महाप्रभु और उनके सेवक समस्त संसार या, निश्चित ही समस्त ब्रह्मांड के लाभ के लिए आंदोलन को फिर से प्रारंभ कर देते हैं.
स्रोत- अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, सातवाँ सर्ग, खंड 15- पाठ 71

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