जब महाराजा प्रियव्रत ने भगवान ब्रम्हा के निर्देश पर राज सिंहासन स्वीकार किया, तब उनके पिता, मनु ने वानप्रस्थ किया. तत्पश्चात महाराजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से विवाह किया. बर्हिष्मती के गर्भ से उन्हें अग्निधरा, इदमजिह्वा, यज्ञबाहु, महावीर, हिरण्यरेता, घृतप्रस्थ, सवन, मेधातिथि, वीतिहोत्र और कवि नामक दस पुत्र हुए. उन्हें एक बेटी भी हुई, जिसका नाम ऊर्जस्वती था. महाराजा प्रियव्रत अपनी पत्नी और परिवार के साथ कई हजार वर्षों तक रहे. महाराजा प्रियव्रत के रथ के पहियों के छापों ने सात महासागरों और सात द्वीपों का निर्माण किया. प्रियव्रत के दस पुत्रों में से कवि, महावीर और सवन नामक तीन पुत्रों ने संन्यास स्वीकार किया, जो जीवन का चौथा आश्रम होता है, और शेष सात पुत्र सात द्वीपों के शासक बने. बाहरी अंतरिक्ष के ग्रहों को कभी-कभी द्वीप कहा जाता है. हमें समुद्र में विभिन्न प्रकार के द्वीपों का अनुभव है, और इसी तरह, चौदह लोकों में विभाजित, विभिन्न ग्रह अंतरिक्ष के महासागर में द्वीप हैं. जब प्रियव्रत ने अपने रथ से सूर्य का पीछा किया, तब उन्होंने सात अलग-अलग प्रकार के महासागरों और ग्रह प्रणालियों का निर्माण किया, जिन्हें एक साथ भू-मंडल या भूलोक के रूप में जाना जाता है. गायत्री मंत्र में, हम जप करते हैं, ओम् भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर वरेण्यम्. भूलोक ग्रह मंडल के ऊपर भुवर्लोक स्थित है, और उसके ऊपर स्ववर्गीय ग्रहमंडल स्वर्गलोक है. इन सभी ग्रह मंडलों का नियंत्रण सविता, सूर्य-देवता द्वारा किया जाता है. यह समझना चाहिए कि सभी द्वीप, विभिन्न प्रकार के महासागरों से घिरे हुए हैं, और कहा जाता है कि प्रत्येक महासागर की चौड़ाई उस द्वीप के समान ही होती है जिसके आस-पास वह स्थित है. हालांकि, महासागरों की लंबाई, द्वीपों की लंबाई के बराबर नहीं हो सकती. वीरराघव के अनुसार, पहले द्वीप की चौड़ाई 100,000 योजन है. एक योजन आठ मील के बराबर होता है, इसलिए पहले द्वीप की चौड़ाई 800,000 मील होने की गणना की जाती है. इसके आस-पास की जलराशि की चौड़ाई समान होनी चाहिए, लेकिन उसकी लंबाई अलग होनी चाहिए.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, पाँचवा सर्ग, अध्याय 01 – पाठ 01, 31, व 33

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