ब्रम्हांड के भीतर सारे अकाश में समय का नियंत्रण है, वैसे ही जैसे ग्रहों पर संपूर्ण रूप से समय का नियंत्रण है. सूर्य सहित, सभी महाकार ग्रहों का नियंत्रण वायु के प्रवाह से किया जा रहा है, जैसे मेघों को वायु के बल से ले जाया जाता है. इसी प्रकार, अपरिहार्य काल, या समय, वायु और अन्य तत्वों के कार्यों पर भी नियंत्रण रखता है. इसलिए, सभी वस्तुओं का नियंत्रण, परम काल द्वारा किया जाता है जो भौतिक संसार में भगवान का बलशाली प्रतिनिधि है. इसलिए युधिष्ठिर को समय के कल्पनातीत कर्म के लिए खेद नहीं करना चाहिए. सभी को समय के कर्मों और प्रतिक्रियाओं को सहना पड़ता है जब तक कि वे भौतिक संसार की परिस्थितियों के भीतर होते हैं. युधिष्ठिर को यह नहीं सोचना चाहिए कि उन्होंने पिछले जन्म में पाप किये थे और उसका प्रतिफल भुगत रहे हैं. सबसे पवित्रतम व्यक्तियों को भी भौतिक प्रकृति की स्थितियों को भुगतना पड़ता है. लेकिन एक पवित्र पुरुष भगवान के प्रति निष्ठावान होता है, क्योंकि उसका मार्गदर्शन धार्मिक सिद्धांतों का पालन करने वाले सच्चे ब्राम्हण और वैष्णव द्वारा किया जाता है. यही तीन मार्गदर्शक सिद्धांत जीवन के लक्ष्य होने चाहिए. व्यक्ति को शाश्वत समय के छलावों से विक्षुब्ध नहीं होना चाहिए. यहाँ तक कि ब्रम्हांड के महान नियंत्रक, ब्रम्हाजी भी उसी समय के नियंत्रण में हैं; इसलिए, व्यक्ति को धार्मिक सिद्धांतों का सच्चा अनुयायी होने पर भी इस तरह समय द्वारा नियंत्रित किए जाने का विद्वेष नहीं करना चाहिए.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पहला सर्ग, अध्याय 9 – पाठ 14

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