भगवद्-गीता (16.7) कहता है, प्रवृत्तिम् च निवृत्तिम् च जना न विदुर असुरः दैत्य, जो मानव से कुछ कम होते हैं लेकिन पशु नहीं कहलाते, वे प्रवृत्ति और निवृत्त् को, क्या करना है और क्या नहीं ऐसा नहीं जानते. भौतिक संसार में, प्रत्येक जीव की कामना जितना हो सके भौतिक संसार पर आधिपत्य जमाने की होती है. यद्यपि सभी शास्त्र, निवृत्ति मार्ग, या जीवन की भौतिकवादी प्रवृत्ति से छुटकारे का सुझाव देते हैं. संसार के सबसे पुराने वैदिक सभ्यता के शास्त्रों के अतिरिक्त, अन्य शास्त्र इस बात पर सहमत हैं. उदाहरण के लिए, बौद्ध शास्त्रों में भगवान बुद्ध यह सुझाव देते हैं कि व्यक्ति को भौतिक वादी जीवन प्रवृत्ति छोड़ने पर निर्वाण मिलता है. बाइबल में, वह भी शास्त्र है, हमें समान सुझाव मिलता है: भौतिकवादी जीवन का त्याग कर देना चाहिए और परमेश्वर के राज्य में लौट जाना चाहिए. हम चाहे जिस शास्त्र का परीक्षण करें, विशेषकर वैदिक शास्त्र की, समान सुझाव ही दिया गया है: व्यक्ति को अपने भौतिक वादी जीवन का त्याग करना चाहिए और अपने मूल, आध्यात्मिक जीवन में लौट जाना चाहिए. शंकाराचार्य भी समान निष्कर्ष प्रतिपादित करते हैं. ब्रम्ह सत्यम जगन् मिथ्या: यह भौतिक संसार या भौतिकवादी जीवन केवल भ्रम है, और इसलिए व्यक्ति को उसके भ्रममय कर्मों को रोकना चाहिए और ब्राम्हण के स्तर पर आ जाना चाहिए.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, छठा सर्ग, अध्याय 5- पाठ 20

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