“इन दिनों, पश्चिमी देशों में सरकारें लोकतांत्रिक विधि से चुनी जाती हैं, और इस प्रकार जनसमूह अपने नेताओं की नियति के साथ पहचाना जाता है. जब अहंकारी नेता हिंसा में लिप्त होते हैं, तो वही लोग ऐसे युद्धकारी निर्णयों का आघात भुगतते हैं जिन्होंने उन्हें चुना है. अतः संसार के लोकतांत्रिक राष्ट्रों में लोगों को कृष्ण चैतन्य नेताओं का चुनाव करना चाहिए, जो भगवान के नियमों के अनुरूप प्रशासन स्थापित करेंगे. यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो उनके भौतिकवादी नेता, परम भगवान की इच्छा से अनभिज्ञ, निःसंदेह प्रलयकारी घटनाओं द्वारा दंडित होंगे, और वे लोग भी अपने नेताओं के कृत्यों के लिए उत्तरदायी होने के कारण, कष्ट साझा करेंगे, जिन्होंने ऐसे नेताओं को चुना है. यह विडंबना है कि आधुनिक लोकतंत्रों में नेता न केवल स्वयं को सार्वभौमिक नियंत्रक मानते हैं, बल्कि लोगों का जनसमूह, नेताओं को भगवान के प्रतिनिधियों की अपेक्षा केवल अपना प्रतिनिधि मानता है, लोगों के रूप में भी, स्वयं को अपने राष्ट्र का नियंत्रक समझता है. इस प्रकार इस श्लोक में वर्णित ताड़ना आधुनिक संसार में सामान्य लोगों के लिए अभूतपूर्व रूप से लागू हो गई है.

आधुनिक मनुष्य को अपने अहंकारी पद से पतित होकर स्वयं को केवल प्रकृति का पाठ भर नहीं बनाना चाहिए; बल्कि उसे विनम्रतापूर्वक भगवान, परम सत्य, श्री कृष्ण के सर्व-आकर्षक व्यक्तित्व की इच्छा को पूरा करना चाहिए, और पवित्रता, शांति और व्यापक ज्ञान के एक नए युग का प्रारंभ करना चाहिए.”

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 27- पाठ 07

(Visited 10 times, 1 visits today)
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •