उचित विधि से आध्यात्मिक सेवा का निष्पादन करने के लिए व्यक्ति को निम्न सिद्धांतों का पालन करना चाहिए: (1) प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु की शरण में जाना चाहिए. (2) आध्यात्मिक गुरु से दीक्षा लेनी चाहिए. (3) आध्यात्मिक गुरु की सेवा करना चाहिए. (4) आध्यात्मिक गुरु से प्रेम के बारे में प्रश्न करना और सीखना चाहिए. (5) भगवान की प्रेममयी पारलौकिक सेवा में समर्पित पवित्र व्यक्तियों के पद-चिन्हों का अनुसरण करना चाहिए. (6) कृष्ण की संतुष्टि के लिए सभी प्रकार के आनंद और कष्टों का त्याग करने के लिए तत्पर होना चाहिए. (7) उन स्थानों पर रहना चाहिए जहाँ कृष्ण ने लीलाएँ की थीं. (8) शरीर के पालन के लिए कृष्ण द्वारा जो भी भेजा जाए उसमें प्रसन्न रहना चाहिए और अधिक के लिए भटकना नहीं चाहिए. (9) एकादशी पर उपवास करना (यह पूर्णिमा के बाद ग्यारहवें दिन, और अवावस के ग्यारह दिन बाद आती है. ऐसे दिन पर अन्न, दालें या फलियों का सेवन नहीं करते; केवल सब्जियाँ और दूध लिए जाते हैं, और हरे कृष्ण का जाप और शास्त्रों का अध्ययन बढ़ा दिया जाता है.) (10) भक्तों, गौ और बरगद जैसे पवित्र वृक्षों का आदर करना. आध्यात्मिक सेवा के मार्ग का अनुसरण करने वाले एक नये भक्त के लिए इन दस सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है.

अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान चैतन्य, स्वर्ण अवतार की शिक्षाएँ”, पृ. 143

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