भक्ति-योग, भक्ति सेवा, समस्त दर्शन प्रणालियों का आधार है; सारा दर्शन जो भगवान की भक्ति सेवा को लक्ष्य नहीं करता उसे केवल मानसिक अटकल माना जाता है. लेकिन निश्चित ही बिना दार्शनिक आधार के बिना भक्ति-योग न्यूनाधिक रूप से केवल भावुकता है. व्यक्तियों के दो वर्ग होते हैं. कुछ स्वयं को बौद्धिक रूप से विकसित समझते हैं और बस अनुमान लगाते और ध्यान करते हैं, औऱ दूसरे भावुक होते हैं और अपने प्रस्तावों के लिए उनके पास कोई दार्शनिक आधार नहीं होता. इनमें से कोई भी जीवन का उच्चतम लक्ष्य नहीं पा सकते–या, यदि वे पा सकते हैं, तो उनको बहुत वर्ष लगने वाले हैं. वैदिक साहित्य इसलिए यह सुझाव देते हैं कि तीन तत्व होते हैं–जो परम भगवान, जीव, और उनका शाश्वत संबंध– और जीवन का लक्ष्य भक्ति, या भक्ति सेवा के सिद्धांतों का पालन करना होता है, और अंततः भगवान के सेवक के रूप में पूर्ण समर्पण और प्रेम में परम भगवान के ग्रह को अर्जित करना होता है.

सांख्य दर्शन समस्त अस्तित्व का विश्लेषणात्मक अध्ययन है. व्यक्ति को सभी कुछ उसकी प्रकृति और लक्षणों का परीक्षण करके समझना होगा. इसे ज्ञान अर्जित करना कहते हैं. लेकिन व्यक्ति को जीवन का लक्ष्य या ज्ञान प्राप्त करने का आधारभूत सिद्धांत–भक्ति-योग प्राप्त किए बिना केवल ज्ञान ही अर्जित नहीं करना चाहिए. यदि हम भक्ति योग त्याग दें औऱ बस चीज़ों (जैसी वे होती हैं) के स्वभाव के विश्लेषणात्मक अध्ययन में व्यस्त हो जाएँ, तो फिर परिणाम व्यावहारिक रूप से शून्य होगा. भागवतम् में कहा गया है कि इस प्रकार का जुड़ाव कुछ-कुछ धान कूटने जैसै होता है. यदि अनाज पहले ही निकाला जा चुका हो तो धान कूटने का कोई अर्थ नहीं होता. भौतिक प्रकृति, जीव और परमात्मा के वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा, व्यक्ति को भगवान की भक्ति सेवा के आधारभूत सिद्धांतों को समझना होगा.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 29- पाठ 02

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