जैसा कि भगवद्-गीता (9.32) में कहा गया है, स्त्रियो वैश्यस तथा शूद्रास ते अपि यन्ति परम गतिम्. स्त्रियों को आध्यात्मिक सिद्धांतों का पालन करने में बहुत बलशाली नहीं माना जाता, किंतु यदि कोई स्त्री एक ऐसा अनुकूल पति पाने के लिए पर्याप्त भाग्यशाली हो जो कि आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो और यदि वह सदैव उसकी सेवा में रहती है, तो उसे अपने पति के समान ही लाभ मिलते हैं. यहाँ स्पष्ट कहा गया है कि सौभरी मुनि की पत्नियाँ भी अपने पति के प्रभाव से आध्यात्मिक संसार में प्रविष्ट हुई थीं. वे अयोग्य थीं, किंतु चूँकि वे अपने पति की निष्ठावान अनुयायी थीं, वे भी उसके साथ आध्यात्मि संसार में प्रविष्ट हो सकीं. इसलिए एक स्त्री को अपने पति की निष्ठावान सेविका होना चाहिए, और यदि पति आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो, तो स्त्री को आध्यात्मिक संसार में प्रवेश करने का अवसर स्वतः ही मिल जाएगा.

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , नवाँ सर्ग, अध्याय 6 – पाठ 55

(Visited 104 times, 1 visits today)
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •