“मृत्यु के समय पर हर जीवित व्यक्ति को चिंता होती है कि उसकी पत्नी और बच्चों का क्या होगा. उसी प्रकार, एक नेता भी चिंता करता है कि उसके देश या उसके राजनैतिक दल का क्या होगा. जब तक कि व्यक्ति पूर्ण रूप से कृष्ण चैतन्य नहीं हो, उसे अपनी विशिष्ट चेतना अवस्था के अनुसार अगले जीवन में कोई शरीर स्वीकारना पड़ेगा. चूँकि पुरंजन अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में सोच रहा है और अपनी पत्नी के विचारों में अत्यधिक डूबा हुआ है, वह एक स्त्री का शरीर स्वीकार करेगा. उसके समान ही, एक नेता या तथाकथित राष्ट्रवादी, जो अपनी जन्मभूमि से बहुत अधिक जुड़ा हुआ है, उसका पुनर्जन्म अपने राजनैतिक करियर की समाप्ति के बाद निश्चित ही उसी धरती पर होगा. व्यक्ति का अगला जीवन इस जीवन में किए गए कर्मों द्वारा भी प्रभावित होगा. कभी-कभी नेता अपनी इंद्रियों की तुष्टि के लिए महा पापमय कृत्य करते हैं. किसी नेता के लिए अपने विरोधी दल के व्यक्ति की हत्या करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. भले ही किसी नेता को उसकी तथाकथित जन्मभूमि में जन्म लेने की अनुमति हो, फिर भी उसे अपने पिछले जीवन में किए गए पापमय कर्मों के लिए कष्ट भुगतना होगा. देहांतरण का यह विज्ञान आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए पूरी तरह से अज्ञात है. तथाकथित वैज्ञानिक इन चीज़ों पर विचार नहीं करना चाहते क्योंकि यदि वे इस सूक्ष्म विषय और जीवन की समस्याओं पर विचार करेंगे, तो उन्हें अपना भविष्य बहुत अंधकारमय दिखाई देगा. इसलिए वे भविष्य का विचार नहीं करना चाहते और सामाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय आवश्यकता के बहाने से सभी प्रकार के पापमय कृत्यों को जारी रखते हैं.”

स्रोत: अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, चौथा सर्ग, खंड 28 – पाठ 21

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