मानव जन्म आत्म-साक्षात्कार के लिए एक महान अवसर होता है. किसी का जन्म किसी उच्चतर ग्रह मण्डल में देवताओं के बीच हुआ हो, लेकिन भौतिक सुख-साधनों की प्रचुरता के कारण व्यक्ति भौतिक बंधन से मुक्त नहीं हो पाता. यहाँ तक कि इस धरा पर भी जो लोग बहुत संपन्न हैं, वे सामान्यतः कृष्ण चेतना अपनाने की चिंता नहीं करते. एक बुद्धिमान व्यक्ति जो वास्तव में भौतिक चंगुल से मुक्त होने में रुचि रखता है उसे शुद्ध भक्तों के साथ जुड़ना चाहिए. इस प्रकार की संगति से, व्यक्ति धीरे-धीरे धन और स्त्रियों के भौतिक आकर्षण से मुक्त हो सकता है. धन और स्त्री भौतिक आसक्ति के मूल सिद्धांत हैं. इसलिए श्री चैतन्य महाप्रभु ने उन लोगों को सुझाव दिया है जो भगवान के राज्य में प्रवेश करने हेतु योग्य बनने के लिए वास्तव में भगवान के पास लौटने, धन और स्त्रियों का त्याग करने के बारे में गंभीर हैं. धन और स्त्रियों का भगवान की सेवा में पूरी तरह से उपयोग किया जा सकता है, और जो इस तरह से उनका उपयोग कर सकता है, वह भौतिक बंधन से मुक्त हो सकता है. सतं प्रसंगं मम वीर्य-संविदो भवन्ति हृत-कर्ण-रसयनः कथाः (भाग. 3.25.25). केवल भक्तों की संगति में ही व्यक्ति भगवान के परम व्यक्तित्व की महिमा का आस्वादन कर सकता है. किसी शुद्ध भक्त की थोड़ी ही संगति के माध्यम से व्यक्ति वापस परम भगवान तक जाने की अपनी यात्रा में सफल हो सकता है.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पंचम सर्ग, अध्याय 13- पाठ 21

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