वैदिक शास्त्रों के अनुसार मांसाहार निषेधात्मक है क्योंकि कोई भी मांसाहारी भोजन (मांस / मछली / अंडा) केवल जीभ का मोह है. हर धर्म में, हत्या निषेधात्मक या बहुत अधिक प्रतिबंधित है. ईसाई धर्म में आपको आज्ञा दी गई है “तुम हत्या नहीं करोगे.” यद्यपि, आज लगभग सभी लोग इस आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हैं. यदि आप प्रभु यीशु मसीह द्वारा दी गई निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हैं, तो आप ईसाई होने का दावा कैसे कर सकते हैं. और भले ही कोई ईसाई न हो, तब भी हत्या सबसे अधिक पापपूर्ण है और जहाँ तक संभव हो इससे बचना चाहिए. हत्या करने से आप पापमय गतिविधियों और उनकी परिणामी प्रतिक्रियाओं में उलझ जाते हैं, परिणामस्वरूप, हमें सदा के लिए विभिन्न प्रकार के शरीर धारण करने होंगे. कभी-कभी लोग तर्क देते हैं कि सब्जियों में भी जीवन होता है। हाँ, यह सच है और इसीलिए शास्त्रों में केवल प्रसादम (खाने से पहले कृष्ण को अर्पित किए जाने वाला भोजन) ग्रहण करने का सुझाव दिया गया है. कृष्ण के द्वारा जो भी छोड़ दिया जाए, हमें वह लेना चाहिए. वैदिक शास्त्रों के अनुसार यही प्रक्रिया है, हमें सीधे ग्रहण नहीं करना चाहिए. अतः, जबकि शाकों में जीवन होता है, कृष्ण कहते हैं, पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम यो मे भक्त्य प्रयच्छति तद् अहम्…अस्नामि: [भ.गी. 9.26] “अगर कोई मुझे प्रेम से एक पत्ता, एक फल, या पानी अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार करूंगा.” तो फिर सब्जी खाने में कोई पाप नहीं है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014, अंग्रेजी संस्करण), “आत्मज्ञान के लिए खोज” पृ. 71, 72 व 186 अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014, अंग्रेजी संस्करण), “आत्मज्ञान का विज्ञान” पृ. 133

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