हम कृष्ण की संगति में आनंद का पूर्ण अनुभव कर सकते हैं. हम कृष्ण से एक सेवक, मित्र, पिता, माता या दाम्पतिक प्रेमी के रूप में संबंध जोड़ सकते हैं. पाँच मूल रस होते हैं – संत, दास्य, साख्य, वात्सल्य और माधुर्य. इस भौतिक संसार में, हम उन्हीं रसों, या संबंधों का अनुभव करते हैं. हम किसी के साथ पिता, पुत्र, प्रेमी, प्रेमिका, गुरु, सेवक के रूप में या अन्यथा संबंधित हैं. ये आध्यात्मिक दुनिया में पाए जाने वाले कृष्ण के साथ संबंधों के विकृत प्रतिबिंब हैं. भौतिक संसार में आज मैं अपने पुत्र के लिए अपने प्रेम का आनंद ले सकता हूं, लेकिन कल मेरा पुत्र मेरा सबसे बड़ा शत्रु भी हो सकता है. इस प्रकार के प्रेम में कोई अमरत्व नहीं है. या, यदि मेरा पुत्र मेरा शत्रु नहीं बनता, तो वह मर सकता है. आज मैं किसी पुरुष या स्त्री से प्रेम कर सकता हूँ, लेकिन कल हम बिछड़ सकते हैं. ये सब भौतिक संसार की विसंगतियों के कारण होता है. हालाँकि, आध्यात्मिक संसार में ये संबंध कभी नहीं टूटते. वे केवल बढ़ते ही रहते हैं और इसे ही संपूर्णता कहते हैं.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2007 संस्करण, अंग्रेजी), भगवान कपिल, देवाहुति के पुत्र की शिक्षाएँ, पृ. 180

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