भगवान शिव माया से पीड़ित नहीं हो सकते. इसलिए यह समझना चाहिए कि भगवान शिव को भगवान विष्णु के आंतरिक बल द्वारा सताया जा रहा था. भगवान विष्णु अपनी विभिन्न शक्तियों द्वारा अनेक अद्भुत गतिविधियाँ कर सकते हैं. परस्य शक्तिर विविधैव श्रुयते स्वभाविकि ज्ञानः-बाल-क्रिया च (श्वेताश्वतार उपनिषद 6.8). परम भगवान की विभिन्न शक्तियाँ होती हैं, जिनके द्वारा वे बहुत कुशलतापूर्वक कर्म कर सकते हैं. किसी भी कार्य को दक्षता से करने के लिए, उन्हें विचार मात्र करने की भी आवश्यकता नहीं होती. चूँकि भगवान शिव को स्त्री द्वारा सताया जा रहा था, यह समझ लेना चाहिए कि ऐसा किसी स्त्री के द्वारा नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु द्वारा किया जा रहा था.

जब कोई स्त्री को देखने पर कामुक इच्छाओं से उत्तेजित हो जाता है, तो वे कामनाएँ अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं, किंतु जब यौन प्रक्रिया में वीर्य पतन होता है, तो कामुक इच्छा समाप्त हो जाती है. इसी सिद्धांत ने भगवान शिव पर भी कार्य किया. वे सुंदर स्त्री मोहिनी मूर्ति से आकर्षित हो गए थे, किंतु जब उनका वीर्य संपूर्ण रूप से स्खलित हो गया, तो वे अपनी चेतना में लौटे और उन्हें भान हुआ कि जैसे ही उन्होंने वन में स्त्री को देखा था उन्हें पीड़ित किया जा रहा था. इस प्रकार भगवान शिव अपने और परम भगवान के व्यक्तित्व के पद को समझ सके, जिनके पास असीमित शक्तियाँ हैं. समझ में आ जाने पर, भगवान शिव को भगवान विष्णु द्वारा उन पर किए गए कृत्य पर थोड़ा भी आश्चर्य नहीं हुआ.

यदि व्यक्ति ब्रम्हचर्य द्वारा अपने वीर्य की रक्षा करने में प्रशिक्षित हो, तो स्वाभाविक रूप से वह किसी स्त्री के सौंदर्य से आकर्षित नहीं होता. यदि व्यक्ति ब्रम्हचारी बना रहे, तो वह भौतिक अस्तित्व में बहुत से कष्टों से स्वयं को बचा लेता है. भौतिक अस्तित्व का अर्थ है यौन संबंध का सुख भोगना (यन् मैथुनादिग्रहमेदि – सुखम). यदि व्यक्ति अपना वीर्य सुरक्षित रखने हेतु यौन जीवन के बारे में शिक्षित हो, तो वह भौतिक अस्तित्व के खतरों से बच जाता है.

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 12 – पाठ 31, 35 व 36

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