भगवान राम भगवान के श्रेष्ठतम व्यक्तित्व हैं, और उनके भाई, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, उनके समग्र विस्तार हैं. रामायण के कई भद्दे और अज्ञानी टीकाकार हैं जो भगवान रामचंद्र के छोटे भाइयों को साधारण जीवों के रूप में प्रस्तुत करते हैं. लेकिन यहाँ परम भगवान के विज्ञान पर सबसे प्रामाणिक ग्रंथ में, यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उनके भाई उनके समग्र विस्तार थे. मूल रूप से भगवान रामचंद्र वासुदेव के अवतार हैं, लक्ष्मण शंकर्षण के अवतार हैं, भरत प्रद्युम्न के अवतार हैं, और शत्रुघ्न अनिरुद्ध के अवतार हैं, भगवान के परम व्यक्तित्व के विस्तार हैं. लक्ष्मीजी सीता भगवान की आंतरिक शक्ति हैं और वे न तो एक साधारण महिला हैं और न ही दुर्गा का बाह्य शक्ति अवतार. दुर्गा भगवान की बाह्य शक्ति हैं, और उनका संबंध भगवान शिव से है. जैसा कि भगवद-गीता (4.7) में कहा गया है, जब तथ्यात्मक धर्म के निर्वहन में विसंगतियां होती हैं तब भगवान प्रकट होते हैं. उन्हीं परिस्थितियों में, भगवान रामचंद्र भी, अपने भाइयों के साथ, जो भगवान की आंतरिक शक्ति का विस्तार हैं, और लक्ष्मीजी सीतादेवी, प्रकट हुए. भगवान रामचंद्र को उनके पिता, महाराजा दशरथ ने अटपटी परिस्थितियों में घर छोड़ कर वन जाने का आदेश दिया था, और भगवान ने, अपने पिता के आदर्श पुत्र के रूप में, अयोध्या का राजा घोषित किए जाने के अवसर पर भी, उस आदेश का पालन किया था. उनके छोटे भाइयों में से, लक्ष्मणजी उनके साथ जाने के इच्छुक थे, और इसीलिए उनकी शाश्वत पत्नी, सीताजी भी उनके साथ जाने की इच्छा रखती थीं. भगवान ने दोनों को सहमति दी, और सभी ने साथ में, चौदह वर्षों तक दंडकारण्य वन में रहने के लिए प्रवेश किया. उनके वनवास के दौरान रामचंद्र और रावण के बीच लड़ाई हुई, और रावण ने भगवान की पत्नी, सीताजी का अपहरण कर लिया. उसके समस्त राज्य और परिवार सहित महाशक्तिशाली रावण पर विजय के साथ यह लड़ाई समाप्त हुई. सीताजी जो लक्ष्मीजी, या भाग्य की देवी हैं, लेकिन उनका भोग कोई भी जीव नहीं कर सकता. जीवों द्वारा उनकी पूजा उनके पति श्री रामचंद्र के साथ की जानी चाहिए. रावण जैसा भौतिकवादी व्यक्ति इस महान सत्य को नहीं समझता, लेकिन इसके विपरीत वह सीतादेवी को राम के संरक्षण से छीनना चाहता है और इस प्रकार अपने लिए महान दुखों को उत्पन्न कर लेता है. भौतिकवादी, जो एश्वर्य औऱ भौतिक समृद्धि के पीछे लगे होते हैं, रामायण से सीख सकते हैं कि परम भगवान की सर्वोच्चता को स्वीकार किए बिना भगवान की प्रकृति का शोषण करने की नीति रावण की नीति है. रावण भौतिक रूप से बहुत उन्नत था, इतना कि उसने अपने राज्य लंका को शुद्ध सोने या पूर्ण भौतिक संपदा में बदल दिया था. लेकिन चूँकि उसने भगवान रामचंद्र के वर्चस्व को नहीं पहचाना और उनकी पत्नी, सीता का हरण करके उनकी अवहेलना की, रावण मारा गया, और उसका सारा एश्वर्य और शक्ति नष्ट हो गए. भगवान रामचंद्र छः ऐश्वर्यों वाले एक पूर्ण अवतार हैं, और इसलिए वे सभी एश्वर्यों के स्वामी हैं.

स्रोत : अभय भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, द्वितीय सर्ग, अध्याय 7- पाठ 23

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