जब आध्यात्मिक स्फुलिंग, जिसका वर्णन एक बाल के सिरे का दस-हज़ारवें भाग के रूप में किया जाता है, को भौतिक अस्तित्व में बलपूर्वक लाया जाता है, तब वह स्फुलिंग स्थूल और सूक्ष्म भौतिक तत्वों से ढँका होता है. भौतिक शरीर पाँच स्थूल तत्वों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — और तीन सूक्ष्म तत्वों — मन, बुद्धि और अहंकार से बना होता है. जब कोई मुक्त होता है, तो वह इन भौतिक आवरणों से स्वतंत्र हो जाता है. वास्तव में, योग में सफलता में इन भौतिक आवरणों से मुक्त होना और आध्यात्मिक अस्तित्व में प्रवेश करना ही शामिल होता है.

निर्वाण के बारे में भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ इस सिद्धांत पर आधारित हैं. भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को ध्यान और योग के माध्यम से इन भौतिक आवरणों का त्याग करने का निर्देश दिया है. भगवान बुद्ध ने आत्मा के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है, लेकिन यदि कोई उनके निर्देशों का कड़ाई से पालन करता है, तो वह अंततः भौतिक आवरणों से मुक्त हो जाएगा और निर्वाण प्राप्त करेगा. जब कोई जीव भौतिक आवरणों को त्याग देता है, तब वह केवल आत्मा रह जाति है. इस आत्मा को ब्राम्हण दीप्ति में समाहित हो जाने के लिए आध्यात्मिक आकाश में प्रवेश करना आवश्यक है. दुर्भाग्य से, जब तक जीव को आध्यात्मिक संसार और वैकुंठों की जानकारी नहीं होती है, तो उसके भौतिक अस्तित्व में पतित होने की संभावना 99.9 प्रतिशत होती है. हालाँकि, ब्राम्हण दीप्ति, या ब्रम्हज्योति से उसके आध्यात्मिक ग्रह की पदोन्नति की कुछ संभावना होती है. अवैयक्तिकों द्वारा इस ब्रम्हज्योति को प्रकारों से विहीन माना जाता है, और बौद्ध इसे शून् मानते हैं. दोनों ही प्रसंगों में, भले ही कोई आध्यात्मिक आकाश को गुण रहित या शून्य मानता हो, ऐसा कोई आध्यात्मिक आनंद नहीं है जिसका भोग आध्यात्मिक ग्रहों, वैकुंठों या कृष्णलोक में किया जाता है. आनंद के प्रकारों की अनुपस्थिति में, धीरे-धीरे आत्मा आनंदमय जीवन को भोगने का आकर्षण अनुभव करती है, और कृष्णलोक या वैकुंठलोक की कोई ज्ञान न होने से, वह भौतिक विविधता का आनंद लेने के लिए भौतिक गतिविधियों में पतित हो जाती है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण – अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, चतुर्थ सर्ग, अध्याय 23 – पाठ 15

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