वासुदेव उत्पत्ति, या भगवान के परम व्यक्तित्व की समझ की अवस्था, को विशुद्ध मंगल, या शुद्ध-सत्व कहा जाता है. शुद्ध-तत्व अवस्था में दूसरे गुणों का कोई अतिक्रमण नहीं होता, जिनका नाम वासना और अज्ञान है. वैदिक साहित्य में परम भगवान के चार व्यक्तित्वों के रूप में भगवान के विस्तार का उल्लेख है – वासुदेव, शंकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध. यहाँ महत्-तत्व के पुनः प्रकट होने पर भगवान के चार विस्तार होते हैं. वह जो परमात्मा के भीतर आसीन है पहले वासुदेव के रूप में विस्तार लेता है. वासुदेव अवस्था भौतिक इच्छाओं के उल्लंघन से मुक्त होती है और वह स्थिति है जिसमें कोई व्यक्ति भगवान के परम व्यक्तित्व, या उस उद्देश्य को समझ सकता है जिसका वर्णन भगवद्-गीता में अद्भुत के रूप में किया गया है. यह महत्-तत्व की एक और विशेषता है. वासुदेव विस्तार को कृष्ण चेतना भी कहा जाता है, क्योंकि यह भौतिक वासना और अज्ञान के सभी प्रभावों से मुक्त है. समझ की यह स्पष्ट स्थिति भगवान के परम व्यक्तित्व को जानने में सहायता करती है. वासुदेव स्थिति को भगवद-गीता में क्षेत्र-ज्ञ के रूप में भी समझाया गया है, जिसका अर्थ गतिविधियों के क्षेत्र का ज्ञाता और साथ ही सर्व-ज्ञानी भी है. एक विशेष प्रकार के शरीर को धारण करने वाला प्राणी उस शरीर को जानता है, लेकिन सर्व-ज्ञाता, वासुदेव, केवल किसी विशिष्ट प्रकार के शरीर को ही नहीं, बल्कि विभिन्न प्रकार के शरीरों में गतिविधियों के क्षेत्र को भी जानता है. स्पष्ट चेतना या कृष्ण चेतना में स्थित होने के लिए, वासुदेव की पूजा करनी चाहिए. वासुदेव अकेले कृष्ण हैं, जब कृष्ण, या विष्णु, उनकी आंतरिक ऊर्जा की संगत के बिना अकेले हैं, तो वे वासुदेव होते हैं. जब वे अपनी आंतरिक शक्ति के साथ होते हैं, तो उन्हें द्वारकाधीश कहा जाता है. स्पष्ट चेतना या कृष्ण चेतना के लिए, वासुदेव की पूजा करनी होगी. भगवद-गीता में यह भी बताया गया है कि कई जन्मों के बाद, व्यक्ति वासुदेव को समर्पित हो पाता है. ऐसी महान आत्मा विलक्षण है. झूठे अहंकार से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति को शंकर्षण की पूजा करनी होगी. शंकर्षण की पूजा भगवान शिव के माध्यम से भी की जाती है; वे भुजंग जो भगवान शिव के शरीर को ढँकते हैं संकर्षण के प्रतिनिधि हैं, और भगवान शिव हमेशा संकर्षण के ध्यान में लीन रहते हैं. वह जो वास्तव में भगवान शंकर का उपासक है संकर्षण के भक्त के रूप में झूठे, भौतिक अहंकार से मुक्त हो सकता है. यदि व्यक्ति मानसिक व्यवधानों से स्वतंंत्र होना चाहता है, तो उसे अनिरुद्ध की पूजा करनी होगी. इस उद्देश्य के लिए, वैदिक साहित्य में चंद्र ग्रह की पूजा करने का सुझाव भी दिया गया है. उसी प्रकार, व्यक्ति को उसकी बुद्धि में स्थित होने के लिए प्रद्युम्न की पूजा करनी होगी, जिन तक ब्रम्हा की पूजा के माध्यम से पहुँचा जा सकता है. ये प्रसंग वैदिक साहित्य में समझाए गए हैं.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 26- पाठ 21

(Visited 67 times, 1 visits today)
  • 1
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
    1
    Share