मानव समाज की पीड़ाएँ जीवन के एक प्रदूषित लक्ष्य, अर्थात् भौतिक संसाधनों पर आधिपत्य दिखाने के कारण हैं. जितना मानव समाज अधिक इन्द्रिय संतुष्टि के लिए अविकसित भौतिक संसाधनों के दोहन में संलग्न होता है, उतना ही वह भगवान की मायावी, भौतिक ऊर्जा के उलझाव में रहेगा, और इस प्रकार दुनिया का संकट कम होने के बजाय बढ़ता रहेगा. जीवन की मानवीय आवश्यकताओं की आपूर्ति भगवान द्वारा भोजन, दूध, फल, लकड़ी, पत्थर, चीनी, रेशम, जवाहरात, कपास, नमक, पानी, सब्जियों, आदि के रूप में, संसार की मानव जाति और साथ ही ब्रम्हांड के दूसरे प्रत्येक ग्रहों पर अन्य जीवों के भरण-पोषण के लिए भी पर्याप्त मात्रा में की जाती है. आपूर्ति स्रोत पूर्ण है, और मानव के द्वारा उसकी आवश्यकताओं को उचित मार्ग में लाने के लिए केवल थोड़ी सी ऊर्जा आवश्यकता होती है. कृत्रिम रूप से जीवन की सुख-सुविधाओं को बनाने के लिए मशीनों और औजारों या विशाल स्टील प्लांटों की आवश्यकता नहीं है. जीवन को कभी भी कृत्रिम आवश्यकताओं से नहीं, बल्कि सादे जीवन और उच्च विचार के द्वारा सहज बनाया जाता है. शुकदेव गोस्वामी द्वारा मानव समाज के लिए सर्वोच्च आदर्श विचार का सुझाव दिया गया है, अर्थात् श्रीमद-भागवतम् को पर्याप्त रूप से सुनना. कलि के इस युग में, जब मनुष्य जीवन की परिपूर्ण दृष्टि खो चुके होते हैं, तो यह श्रीमद-भागवतम वह मशाल है, जिससे वास्तविक मार्ग को देखा जा सकता है. श्रील जीव गोस्वामी प्रभुपाद ने इस श्लोक में वर्णित कथामृतम् पर टिप्पणी की है और श्रीमद-भागवतम को भगवान के व्यक्तित्व का अमृत संदेश बताया है. श्रीमद-भागवतम के पर्याप्त श्रवण से, जीवन का प्रदूषित लक्ष्य, अर्थात् उसे पदार्थ रूप में ही मानना, कम हो जाएगा, और संसार के सभी हिस्सों में सामान्य रूप से लोग ज्ञान और आनंद का शांतिपूर्ण जीवन जी सकेंगे.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014, अंग्रेजी संस्करण), “श्रीमद्-भागवतम” दूसरा सर्ग, अध्याय 2- पाठ 37

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