वेदों का आदेश है : नयम् आत्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधाया न बहुणा श्रुतेण. केवल वेदों के अध्ययन और प्रार्थना द्वारा व्यक्ति भगवान के परम व्यक्तित्व को नहीं समझ सकता, केवल परम भगवान की कृपा से ही व्यक्ति उन्हें समझ सकता है. इसलिए, भगवान को समझने की प्रक्रिया भक्ति है. भक्ति के बिना, परम सत्य को समझने के लिए केवल वैदिक निर्देशों का पालन करना बिलकुल भी सहायक नहीं होगा. भक्ति की प्रक्रिया को परमहंस समझता है, जिसने हर वस्तु के मर्म को स्वीकार कर लिया है. भक्ति के परिणाम ऐसे परमहंस के लिए आरक्षित होते हैं, और यह अवस्था भक्ति सेवा के अतिरिक्त किसी भी वैदिक प्रक्रिया द्वारा अर्जित नहीं की जा सकती. अन्य प्रक्रियाएँ, जैसे ज्ञान और योग, तभी सफल हो सकती हैं जब भक्ति के साथ मिश्रिता हों. जब हम ज्ञान योग, कर्म योग और ध्यान-योग की बात करते हैं, तो योग भक्ति का सूचक होता है. केवल बुद्धिमत्ता और पूर्ण ज्ञान के साथ निष्पादित भक्ति योग, या बुद्धि योग ही घर वापस, परम भगवान के पास लौटने की सफल विधि होती है. यदि व्यक्ति भौतिक अस्तित्व की पीड़ा से मुक्त होना चाहता है, तो उसे इस लक्ष्य की शीघ्र प्राप्ति के लिए भक्ति सेवा अपना लेनी चाहिए.

 

स्रोत- अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, सातवाँ सर्ग, खंड 09- पाठ 50

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