“आचार्यों ने विभिन्न प्रशंसनीय विधियों से समझाया है कि भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा को अपने साथ क्यों ले गए. श्रील श्रीधर स्वामी यह कहते हुए प्रारंभ करते हैं कि भगवान अपनी साहसी पत्नी को एक नया अनुभव देना चाहते थे अतः वे उन्हें इस असाधारण युद्ध के दृश्य में ले गए. साथ ही, भगवान कृष्ण ने एक बार भूमि, पृथ्वी-देवी को आशीर्वाद दिया था, कि वह उनकी अनुमति के बिना उनके राक्षसी पुत्र को नहीं मारेंगे. चूँकि भूमि सत्यभामा का ही विस्तार है, इसलिए सत्यभामा अत्यधिक दुष्ट भौमासुर के साथ आवश्यकतानुसार व्यवहार करने के लिए कृष्ण को अधिकृत कर सकती थीं.

अंत में, जब नारद मुनि रानी रुक्मिणी के लिए एक दिव्य पारिजात फूल लाए, तो सत्यभामा नाराज हो गईं. सत्यभामा को शांत करने के लिए, भगवान कृष्ण ने उन्हें वचन दिया था, “”मैं तुम्हें इन फूलों का एक पूरा पेड़ दूँगा,”” और इस प्रकार भगवान ने अपने कार्यक्रम में एक स्वर्गीय वृक्ष को प्राप्त करना निर्धारित किया.

आजकल भी समर्पित पति अपनी पत्नियों को खरीदारी के लिए ले जाते हैं, और इस प्रकार भगवान कृष्ण एक स्वर्गीय वृक्ष प्राप्त करने के लिए, साथ ही साथ भौमासुर द्वारा चुराए गई वस्तुओं को पुनः प्राप्त करने और उन्हें उनके वास्तविक स्वामियों को लौटाने के लिए सत्यभामा को स्वर्गीय ग्रहों पर ले गए.

श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ध्यान दिलाते हैं कि युद्ध की प्रचंडता में रानी सत्यभामा स्वाभाविक रूप से भगवान कृष्ण की सुरक्षा के लिए चिंतित हो जाती थीं और युद्ध समाप्त होने की प्रार्थना करती थीं. इस प्रकार वे सरलता पूर्वक कृष्ण को अपने विस्तार, भूमि के पुत्र को मारने की अनुमति दे देतीं.”

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 59- पाठ 2-3

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