वेदांत सूत्र इस घोषणा के साथ प्रारंभ होता है कि परम व्यक्तित्व समस्त रचना का मूल स्रोत होता है (जन्मादि अस्य यतः). पूछा जा सकता है कि क्या भगवान ब्रम्हा परम व्यक्ति हैं. नहीं, परम सर्वोच्च कृष्ण हैं. ब्रह्मा ने अपना चित्त, बुद्धि, सामग्री और अन्य सब कुछ कृष्ण से प्राप्त किया, और फिर वे इस ब्रह्मांड के द्वितीय रचियता, इस ब्रम्हांड के अभियंता बन गए. इस संबंध में हम ध्यान दे सकते हैं कि सृष्टि रचना दुर्घटनावश, किसी पिंड के विस्फोट के कारण नहीं होती. इस तरह के निरर्थक सिद्धांत वैदिक छात्रों द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं. भगवान द्वारा ब्रह्मा पहले सृजित जीव हैं, जो पूर्ण ज्ञान और बुद्धि से संपन्न है. जैसा कि श्रीमद-भागवतम में कहा गया है, तेने ब्रम्हा हृदय आदि-कवये: यद्यपि ब्रम्हा पहले सृजित जीव हैं, वे स्वतंत्र नहीं हैं, क्योंकि वे अपने हृदय के माध्यम से परम भगवान से सहायता प्राप्त करते हैं. इस श्लोक में भगवान ब्रम्हा का वर्णन जगत उत्पत्ति के मूल कारण के रूप में किया गया है, और भौतिक संसार में उनकी यही स्थिति है. ऐसे कई नियंत्रक हैं जिनकी रचना परम भगवान, विष्णु द्वारा की गई है. इसका उदाहरण चैतन्य-चरितामृत में वर्णित एक घटना से मिलता है. जब इस विशिष्ट ब्रम्हांड के ब्रम्हा को कृष्ण ने द्वारका आमंत्रित किया था, तो उन्हें लगा कि वही एकमात्र ब्रम्हा हैं. इसलिए जब कृष्ण ने अपने सेवक से पूछा कि द्वार पर कौन से ब्रम्हा थे, तब भगवान ब्रम्हा को आश्चर्य हुआ. उसने उत्तर दिया कि निस्संदेह, चार कुमारों के पिता भगवान ब्रह्मा दरवाजे पर प्रतीक्षा कर रहे थे. बाद में, भगवान ब्रह्मा ने कृष्ण से पूछा कि उन्होंने यह क्यों पूछा कि कौन से ब्रम्हा आए थे. तब उन्हें सूचित किया गया कि लाखों ब्रम्हा हैं क्योंकि लाखों ब्रम्हांड हैं. तब कृष्ण ने सभी ब्रम्हाओं को बुलाया, जो उनसे मिलने तुरंत आ गए. इस ब्रम्हांड के चतुर्मुखी ब्रम्हा ने स्वयं को इतने सारे ब्रम्हाओं के बीच बहुत तुच्छ अनुभव किया. इस प्रकार यद्यपि प्रत्येक ब्रम्हांड के अभियंता कोई ब्रम्हा होते हैं, उन सभी का मूल स्रोत कृष्ण ही हैं.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, सातवाँ सर्ग, अध्याय 3 – पाठ 2

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