वैदिक साहित्य उच्चतर ग्रहों में भी पढ़ाया जाता है, जैसा कि भगवान द्वारा सूर्य-भगवान (विवस्वन) को शिक्षा देने का संदर्भ भागवद्-गीता (4.1) में मिलता है, और ऐसी शिक्षा शिष्य उत्तराधिकार में हस्तांतरित की जाती है, जैसा कि सूर्य-भगवान द्वारा उनके पुत्र मनु, और मुन से महाराज इक्ष्वाकु को किया गया था. ब्रह्मा के एक दिन में चौदह मनु होते हैं, और यहाँ संदर्भित मनु सातवें हैं, जो प्रजापतियों (जो संतति उत्पन्न करते हैं) में से एक हैं, और वह सूर्य-भगवान के पुत्र हैं. वे वैवस्वत मनु के रूप में जाने जाते हैं. उनके दस पुत्र थे, और महाराज इक्ष्वाकु उनमें से एक हैं. महाराज इक्ष्वाकु ने अपने पिता, मनु से भागवद्-गीता में पढ़ाया गया भक्ति-योग भी सीखा था, जिन्हें यह शिक्षा अपने पिता सूर्य-भगवान से मिली थी. इसके पश्चात में भगवद्-गीता की शिक्षा महाराज इक्ष्वाकु द्वारा शिष्य परंपरा के माध्यम से जारी रही, लेकिन कालांतर में विवेकहीन व्यक्तियों द्वारा इस श्रंखला को तोड़ दिया गया, और इस प्रकार इसकी शिक्षा कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को फिर से दिए जाने की आवश्यकता पड़ी. अतः सभी वैदिक साहित्य भौतिक जगत की रचना की शुरुआत से ही विद्यमान हैं, और इस प्रकार वैदिक साहित्य को अपौरुषेय (मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं) के रूप में जाना जाता है. वैदिक ज्ञान भगवान द्वारा कहा और ब्रह्मा द्वारा पहले सुना गया था, जो ब्रह्मांड में सबसे पहले उत्पन्न जीव हैं.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 12 - पाठ 19
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