हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि यद्यपि किसी वराह का शरीर भौतिक होता है, भगवान का वराह रूप भौतिक रूप से दूषित नहीं था. पृथ्वी के किसी वराह के लिए सत्यलोक से प्रारंभ होकर आकाश तक फैला महा-आकार लेना संभव नहीं था. उनका शरीर सभी परिस्थितियों में हमेशा पारलौकिक होता है; इसलिए, वराह का रूप लेना उनकी केवल लीला है. उनका शरीर समस्त वेद, या पारलौकिक है. लेकिन चूँकि उन्होंने वराह का रूप लिया था, उन्होंने पृथ्वी पर सूंघ कर खोज शुरू की, ठीक एक वराह क जैसे. भगवान किसी भी जीव की भूमिका अचूक निभा सकते हैं. वराह का महाविशाल रूप सभी अ-भक्तों के लिए निश्चित ही डरावना था, लेकिन भगवान के विशुद्ध भक्तों के लिए वह बिलकुल डरावना नहीं था; इसके विपरीत, वे अपने भक्तों की ओर प्रसन्नता से देख रहे थे और उन सभी ने पारलौकिक प्रसन्नता का अनुभव किया.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 13- पाठ 28

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